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फूलमुनी |
कहकर गए थे
कि कमा-धमाकर धनरोपनी के समय
गाँव लौट आओगे
अब तो धनकटनी के भी दो मास बीत गये
पर तुम न आये
अपने संगी-साथी
जिस पर तुम जान लुटाते थे
लौट आये अकेला यहाँ तुम्हें छोड़
असम के दंगे झेलने
औरत होकर मैंने जैसे–तैसे खेत जोता
खमार में छोटका संग धान पीटा
अकेले हाट–बाट जाती रही
भला बैल और भीड़ हमरी कहा सुनता है
बैल की मार खा-खा कर खेत जुती
औने–पौने दाम में महुआ–बरबट्टी बिकी
खैर साल के बुरे दिन तो टर गए जैसे–तैसे
पर तुम जो शहर गये तो अब तक गये ही हो
गाँव की सारी औरतें बाहा-परब की तैयारियाँ
कर रही हैं
सबके मरद शहरों से लौट चुके हैं
गाँव पर ही अपने परिवार संग हैं
एक तुम हो कि शहर के लालच–बलाय में पड़े हो
- सब चर्चा करते हैं
न जाने किस दुविधा में फँसे हो तुम
असम जाकर कि
आने का नाम नहीं लेते
साथियों से कहला भिजाया कि
सब इंतजाम कर जल्दी लौटोगे
फिर न कोई सनेस, न पाती
छोटका रोज तंगतंगियाता है मुझे
कि बापू कब आयेगा
और रोज झूठ बोलती हूँ – कल
गाँव की बहनें भी
पनघट पर तरह–तरह के सवाल करती हैं
कुछ चुटकियाँ लेती हैं
कि तुम्हारे मरद को किसी बॉब-कट केश वाली
या बैगवाली ने फाँस लिया है
पर तुम्हारे दिये बचन का भरोसा करती हूँ
और उन निगोड़ियों के मुँह नहीं लगती
सच बताओ सुकल
कब लौटोगे परदेस से
बहुत काम पड़ा है अभी
गोहाल में गोबर के ढूहों को ठिकाने लगाना
है
बाकी दिनों का धान सिझाना है
आम भी मँजराने को है
तुम बिन सब कुछ फीका-फीका है यहाँ
सब साज–श्रृंगार
आँगन में रंगोली सजना
बहियार में कोयल का कूकना
जंगल में महुआ-साल का फूलना
टोलों में लड़कों का ढ़ोल बजाना
लड़कियों का गाना-थिरकना
सब बहुत अनकुस लगता है यह सब
बहुत उदास रहती हूँ तुम बिन
पलाश सी दहकती हूँ तुम बिन
बहुत दिन हुए तुम्हारी कजरी और फसल–गीत सुने
बहुत दिन हुए तुम्हारी बांसुरी बजे
कितने मास बीत गए साईकिल पर बैठ
तुम संग हाट गये
आओ सुकल छोड़ो शहर का मोह
जैसे भी हो, गाँव में ही हम दो रोटी का जुगाड़ करेंगे
अबकी बरस से
पर जाने न देंगे तुम्हें
गाँव से बाहर
पर आना तो मेरे माथे की बिंदी
कर्णफूल और बैजयंती हार जरूर लेते आना
छोटका का सूट-पैंट
अपने लिए नया धोती-कुरता और नई बांसुरी भी
कितना अच्छा होगा कि
हम उरिन हो जाएँगे गाँव के महाजन रामनरेश
से
तुम्हारे लौटने पर
फिर मिलकर दोनों
माँझी–थान जाएँगे
बनदेवता को नैवेद्य चढ़ाएँगे
फिर परब के नये गीत सुनाना
और नये सुर में बांसुरी बजाना
और सखियों संग मैं
तुम्हारे लाये गहने साड़ी में
फूलों से सजकर जी भर नाचूँगी |
nice
जवाब देंहटाएंछंद बद्ध न होकर भी एक बेहतरीन भाव प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना प्रस्तुति हैं . आभार
जवाब देंहटाएंbhaavo se bharpurn rachna....
जवाब देंहटाएंबहुत खूब … क्या कहूँ… फिर आपकी एक बेहतरीन कविता पढ़ने को मिली।
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट रचना. शुभकामनायें.
जवाब देंहटाएंसुन्दर भावाभिव्यक्ति , दिल भर आया,
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