संध्या नवोदिता हिन्दी की ऐसी युवा
कवयित्री हैं जिन्होंने आधुनिक कविता में बिना शोर किए अवधूती कविताओं का एक शिल्प
रचने का प्रयास किया है जिसका केंद्रीय स्वर प्रेम है । आइए उनकी ‘सुनो जोगी’ सीरीज की कुछ
बेहतरीन कविताओं से आपको रु-ब-रु कराते हैं -
सुनो जोगी !
सुनो जोगी !
ज़िन्दगी इस पार्क का एक भरपूर चक्कर है
तीन नहीं, तीन अरब किलोमीटर का चक्कर
मैं घूमती हूँ पृथ्वी के आलिंगन में
सूर्य के चारों तरफ
ज़िन्दगी इस पार्क का एक भरपूर चक्कर है
तीन नहीं, तीन अरब किलोमीटर का चक्कर
मैं घूमती हूँ पृथ्वी के आलिंगन में
सूर्य के चारों तरफ
सात समन्दरों से भी गहरी और
विस्तृत झील
तुम्हारे खयालों की
सीढियां उतरती हूँ जोगी
तुम्हारे खयालों की
सीढियां उतरती हूँ जोगी
रौशनी इतनी जैसे आँखें जल उठी
हों
सब कुछ रोशन जोगी
तुम्हारी रौशनी में
सब कुछ रोशन जोगी
तुम्हारी रौशनी में
लम्बी परछाइयाँ, लम्बे डग
सत्रह मिनट में धरती नापते हो जोगी
तुम्हारे गुरुत्व से ढकी
सत्रह मिनट में धरती नापते हो जोगी
तुम्हारे गुरुत्व से ढकी
पखावज बजाते हो जोगी
जादू जगाते हो
मल्हार गाते हो
सारी चेतना पर फूँक देते हो मन्तर
जादू जगाते हो
मल्हार गाते हो
सारी चेतना पर फूँक देते हो मन्तर
क्या किये जाते हो जोगी !
सुनो जोगी
हर जगह तुम ही मिलते हो
हर जगह तुम ही मिलते हो
दुनिया के सबसे सुंदर दृश्य के
बीच खड़े थे तुम
उस बेंच पर बैठे मुस्कुराते हुए
फिर चलते हुए मेरे साथ
उस बेंच पर बैठे मुस्कुराते हुए
फिर चलते हुए मेरे साथ
ठण्डी पीली रौशनी के नीचे
झील किनारे रेलिंग पर टिके
विशाल पेड़ों से लटकी भव्य लताओं को निहारते
कभी इंतज़ार करते, कभी बात करते
कभी झूठ बुनते, कभी सच उधेड़ते
झील किनारे रेलिंग पर टिके
विशाल पेड़ों से लटकी भव्य लताओं को निहारते
कभी इंतज़ार करते, कभी बात करते
कभी झूठ बुनते, कभी सच उधेड़ते
सप्तपर्णी की गन्ध खोजते
तुम रचते हो नवरस, शतसुख
बिना किसी वाद्य के बहाते हो स्वर लहरियाँ
तुम रचते हो नवरस, शतसुख
बिना किसी वाद्य के बहाते हो स्वर लहरियाँ
मुस्कुराते हो बस देखकर
और मुझे मुझसे ही दूर लिए जाते हो
और मुझे मुझसे ही दूर लिए जाते हो
जोगी, यह क्या किये जाते हो !!
सुनो जोगी!
मुझे पता है कि तुम ही हो हर जगह
हवा के हर कतरे में
एक साथ देखे गए उस सुपर मून में
मुझे पता है कि तुम ही हो हर जगह
हवा के हर कतरे में
एक साथ देखे गए उस सुपर मून में
मेरा मफलर तुम्हारे गले की छुअन
से
नीम बुखार में पड़ा है
मेरे बगल की सीट पर तुम्हारी आँखें हँसती हैं
नीम बुखार में पड़ा है
मेरे बगल की सीट पर तुम्हारी आँखें हँसती हैं
तुम्हारी हँसी की आभा को मैंने
ओढ़ लिया है
जोगी, चाँद तुम्हारे साथ उतरता है
सूरज तुम्हारे साथ उगता है
नदी तुम्हारी बाँहों से बहती है
रास्ते तुमसे गुलजार होते हैं
फूलों में तुम महकते हो
सूरज तुम्हारे साथ उगता है
नदी तुम्हारी बाँहों से बहती है
रास्ते तुमसे गुलजार होते हैं
फूलों में तुम महकते हो
धरती से आसमान तक तुम छाए हो
झील से सागर तक तुम ही हो बूंदों में समाए
मेरी हथेलियों में गिरते हो बर्फ के फाहे बन के
झील से सागर तक तुम ही हो बूंदों में समाए
मेरी हथेलियों में गिरते हो बर्फ के फाहे बन के
कायनात तुम्हारी है जोगी !!
सुनो जोगी !
तुम्हारी आँखों से चाँद बरसता है
तुम्हारी हँसी का समंदर भिगोता है
तुम्हारी आँखों से चाँद बरसता है
तुम्हारी हँसी का समंदर भिगोता है
तुम्हारी आवाज़ गूँजती है
मन की सात तहों के भीतर
मन की सात तहों के भीतर
जैसे ब्रह्माण्ड में नाद
जैसे एकांत में गूँजती है साँस
जैसे एक अचल स्वर
जैसे एकांत में गूँजती है साँस
जैसे एक अचल स्वर
तुम्हारी धुन से आकार लेती हैं
धड़कनें
तुम्हारी मौजूदगी स्पन्दित होती है रगों में
तुम्हारा होना ही जीवन है
तुम्हारी मौजूदगी स्पन्दित होती है रगों में
तुम्हारा होना ही जीवन है
कबीर के रास्ते आते हो तुम
साँवरिया को खोजते
राग बरसाते हो
साँवरिया को खोजते
राग बरसाते हो
जादू जगाते हो
जोगी , दीवाना किये जाते हो !
सुनो जोगी,
मैं उल्टा चल रही हूँ
मैं उल्टा चल रही हूँ
जहां पर तुम मिले थे
आखिरी दम
वहाँ पर मैं रही ठहरी कई युग
कई सदियाँ लगीं, यह सोचने में
जानने में और समझने में
कि तुम अब हो नहीं
बेशक वही हैं दृश्य, हरियाली,
आखिरी दम
वहाँ पर मैं रही ठहरी कई युग
कई सदियाँ लगीं, यह सोचने में
जानने में और समझने में
कि तुम अब हो नहीं
बेशक वही हैं दृश्य, हरियाली,
वही है चाँद सूरज भी वही है
जो तुमने ज़िन्दगी बख्शी इन्हें वो भी बहुत शीरीं
जो तुमने ज़िन्दगी बख्शी इन्हें वो भी बहुत शीरीं
ये सब हैं साथ
तुम भी हो घुले इनमें, मिले इनमें
कि जाते ही नहीं हो
तुम्हारे रंग कितने हैं - हरा, हल्का हरा, गाढ़ा हरा, कुछ काहिया सा,
कभी मद्धम, कभी चढ़ता हुआ रंग
तुम भी हो घुले इनमें, मिले इनमें
कि जाते ही नहीं हो
तुम्हारे रंग कितने हैं - हरा, हल्का हरा, गाढ़ा हरा, कुछ काहिया सा,
कभी मद्धम, कभी चढ़ता हुआ रंग
ये सब ही तो तुम्हारे हैं
मैं उल्टा चल रही हूँ
चाँद राहें छोड़ सूरज की दिशा में
चाँद राहें छोड़ सूरज की दिशा में
मैं ऐसे सोचती हूँ
कि उल्टा चलते चलते
एक दिन तुम मिल ही जाओगे
जहाँ हम सबसे पहले मिल गए यूँ ही अचानक
कि उल्टा चलते चलते
एक दिन तुम मिल ही जाओगे
जहाँ हम सबसे पहले मिल गए यूँ ही अचानक
उसी छतरी के नीचे,
बैठे सीढ़ियों पर
मुस्कुराते, गुनगुनाते तुम
गगन ओढ़े, धरा पहने, मिट्टी से सुहाने तुम
हवा की तरह जब मुझसे मिलोगे,
बैठे सीढ़ियों पर
मुस्कुराते, गुनगुनाते तुम
गगन ओढ़े, धरा पहने, मिट्टी से सुहाने तुम
हवा की तरह जब मुझसे मिलोगे,
उसी पल रौशनी भर जाएगी सारे
सितारों में
उसी पल ज़िन्दगी हँसने लगेगी
उसी पल ज़िन्दगी हँसने लगेगी
मैं उल्टा चल रही हूँ
कुछ रंग तुमको दे रही हूँ
ये उलझे रंग, धुंधले से अभी जो दीखते हैं
कभी सुंदर बहुत थे
कशिश से, प्यार से निखरे थे ये रंग
लुभाते थे, मगन कर खींचते थे
ये जो झुलसे हुए रंग, दाग जैसे लग रहे
कभी इनसे बगीचे महकते थे
ये काला रंग नहीं था
जामुनी भी यूं नहीं डूबा हुआ था
लाल भी खूनी नहीं था
रंगों का ये मेला
इतना भी बेरंग नहीं था
सुनो जोगी !
सुना है, तुम रंग के माहिर
सभी को रंग देते हो निखालिस
मेरे भी ये रंग लेकर
लाल दे दो सूर्य का सा
चाँदनी सा रुपहला
और बादलों का घना सा ये रंग दे दो
पानी का भी रंग एक
मुस्कान का
अपनी नज़र का रंग दे दो
वो तुम्हारे साथ के लम्हे हज़ारों
राग का, उस नेह का भी रंग दे दो
ये मेरे झुलसे हुए, उलझे हुए बद रंग लेकर
रंग कुछ सुलझे हुए दो
एक रंग उम्मीद का भी डाल देना
एक तुम्हारी हँसी का
एक आधी रात का, एक भोर के तारे का रंग भी
एक रंग अब तक हुई हर बात का
एक रंग उस पहली मुलाकात का भी रख ही देना
सुनो जोगी
रंगों का ये झोला भर के लाओगे कब
बता देना
मैं इंतज़ार में हूँ
7.
तुम्हारी याद बिल्कुल तुम सी है
सुनो जोगी
तुम्हें याद करती हूँ
जैसे पिंजरे में बन्द गौरैया
याद करती है अपने बिसरे हुए गीत
जैसे सूखी धरती याद करती है घनघोर बरसात को
जैसे चातक याद करता है स्वाति नक्षत्र की बूँद को
जैसे सूखी धरती याद करती है घनघोर बरसात को
जैसे चातक याद करता है स्वाति नक्षत्र की बूँद को
मैं तुम्हें याद करती हूँ
जैसे नन्हें चीड़ की पीठ पे हाथ फेरा हो
जैसे ज़िन्दगी में पहली बर्फ़बारी को छुआ गालों पर
जैसे कोहरे भरी सुबह अँगीठी का धुंआ उगलता सूरज तापा
जैसे नन्हें चीड़ की पीठ पे हाथ फेरा हो
जैसे ज़िन्दगी में पहली बर्फ़बारी को छुआ गालों पर
जैसे कोहरे भरी सुबह अँगीठी का धुंआ उगलता सूरज तापा
याद तुम्हारी ऐसे ही आती है
जोगी
जैसे तुम आए अचानक
और फिर रुके नहीं
पल, क्षण, घण्टे, घण्टे और घण्टे
न जाने कितनी सदियों तक
बस तुम रहे जैसे धरती पर रहती है हवा
जैसे तुम आए अचानक
और फिर रुके नहीं
पल, क्षण, घण्टे, घण्टे और घण्टे
न जाने कितनी सदियों तक
बस तुम रहे जैसे धरती पर रहती है हवा
तुम रहे जैसे धरती की सारी
खुशबुएँ बरस गयीं
जैसे हवाओं में घुल गयी धरती की सारी मिठास
जैसे गति रुक गयी, जैसे आ गया तूफ़ान
जैसे अचानक कई गुना हो गयी रफ़्तार
जैसे हवाओं में घुल गयी धरती की सारी मिठास
जैसे गति रुक गयी, जैसे आ गया तूफ़ान
जैसे अचानक कई गुना हो गयी रफ़्तार
तुम्हारी याद सूने जंगल में मगन
हरीतिमा है जोगी
झील से उठती भाप है
चहलकदमी है दुनिया के अरबों जोड़ी कदमों की
कुल्हड़ कॉफी है अगल बगल बैठ कर सिप की हुई
झील से उठती भाप है
चहलकदमी है दुनिया के अरबों जोड़ी कदमों की
कुल्हड़ कॉफी है अगल बगल बैठ कर सिप की हुई
तेज़ ढलान पर उतरी राहत है
ऊँची चढ़ाई का सुकून है
ऊँची चढ़ाई का सुकून है
तुम्हारी याद बिलकुल तुम सी है
8.
तुम्हारे स्पर्श में मुक्ति है जोगी
सुनो जोगी
तुम्हारा होना पूरब का होना है
तुम्हारा होना
धरती की नीली पनीली आँखों पर
उगते सूर्य का चुम्बन हैतुम्हारा होना
दृष्टि का होना है
जोगी, तुम देखते हो
और समन्दर सोना हो जाता है
तुम चलते हो और सूनी सड़कें चाँदी से भर जाती हैं
तुम बोलते हो तो गूँजती है सृष्टि
तुम्हारी हँसी से खिलते हैं इंद्रधनुष
चाँद पेड़ों पे टँगा करता है तुम्हारा इंतज़ार
तुम गाते हो
और दुःख बहने लगते हैं
दर्द तिरोहित होते हैं तुम्हारी उँगलियों के पोरों से
तुम्हारे स्पर्श में मुक्ति है जोगी
9.
तीन किताबें
सुनो जोगी
तुम्हारा झोला मेरे पास छूट गया
है
उसमें तीन किताबें हैं
उसमें तीन किताबें हैं
पहली किताब ज्ञान की है
उसके भारी भरकम शब्दों को दाएं बाएं खिसकाकर
मैंने प्रेम की राई पसार दी है
उसके भारी भरकम शब्दों को दाएं बाएं खिसकाकर
मैंने प्रेम की राई पसार दी है
दूसरी किताब में हैं धीर गम्भीर
गुरू
वहाँ मैंने मुस्कुराते दोस्त को बिठा दिया है
वहाँ मैंने मुस्कुराते दोस्त को बिठा दिया है
तीसरी किताब में स्व है
अपने में मगन
तुम्हारी आत्मा के उस खोल को ओढ़ लिया है मैंने भी
अपने में मगन
तुम्हारी आत्मा के उस खोल को ओढ़ लिया है मैंने भी
अब मैं इस झोले को मुक्त करती
हूँ
10.
और अलेप्पो बच जाता है
सुनो जोगी !
मैं अब भी सपने देखती हूँऔर यह पूरी दुनिया बच्चे सी हो जाती है
सोते वक्त कहती हूँ स्वीट ड्रीम
और अलेप्पो बच जाता है
ज्ञान से ठुंसे तुम्हारे झोले में
प्रेम की राई पसारती हूँ
जहां साम्राज की तलवारें लहू पीती हैं
उसी युद्ध भूमि में तुम्हें चूमती हूँ
पीड़ा की इसी ज़मीन में रोपती हूँ गुलाब
तुम अपने आंसुओं से सींचते हो इन्हें
जोगी, यह दुनिया है जीत और उन्माद की
हम यहाँ नन्हीं सफ़ेद बत्तखों को दाना खिलाते हैं
तुम्हारे जाने में
लौटने की ध्वनि सुनती हूँ
तुम खोजते हो अंतिम सुख
और मैं सूर्य से पृथ्वी का सा रिश्ता जोड़ लेती हूँ
तुम्हारी आँखों के सितारों में है पूरी आकाशगंगा
आर्कटिक सर्कल की तरह लिपटा है सफेद मफलर तुम्हारे गले में
पूर्णिमा के चाँद से प्रगाढ़ तुम्हारे खिंचाव में
सागर की लहर सी उठती हूँ
जोगी, मैं अब भी सपने देखती हूँ
11.
जोगी तुमको खोज रही हूँ
जोगी तुमको खोज रही हूँ
सर्द सुबह में,नम आँखों में, उगते सूरज, चाँद रात में
सप्तपर्ण की खोयी गन्ध में, साँस बन्ध में,
बेचैनी में, आवाज़ों में, वीराने में,
सब से सुन्दर अफ़साने में
सड़क, गली में, रात घनी में,
चौराहे पर, हर आहट में, नीलकण्ठ के नीलेपन में,
तेज़ कदम में, धीमेपन में, उलटे चलते, सीधे बढ़ते
राग में, सुर में, गीत की धुन में, दिन के पहर में,
साँझ नगर में,
याद की हर एक तेज़ लहर में,
जोगी यह मन भूत बसेरा, अंधी गली में चक्कर काटे,
बार बार बस उसे पुकारे
जिसने मन को छील दिया है
ख़ुशी का जुगनू विदा हुआ है
छोड़ के काला घना अँधेरा
जोगी
रात नहीं बीतेगी
उजला सूरज चला गया है
नींद का पंछी दर्द के घर में
तड़प रहा है
12.
जोगी मैं तुम हूँ
सुनो जोगी,
मैं तुम्हारा ही एक नाम हूँ
तुम्हारा ही अगणित विस्तार
तुम्हारी नज़र, तुम्हारी रौशनी, तुम्हारी गन्ध
तुम्हारे स्वर की अथाह हूँ
स्मृति हूँ , विस्मृति भी
सूर्य से पहले का आकाश हूँ
और इसकी परावर्तित धरती भी
ऋचा हूँ, मन्त्र हूँ, गीत हूँ
तुम्हारा ताप हूँ,
दृश्य हूँ और दृष्टि भी
तुम्हारी हँसी हूँ और आँसू भी
बन्धन हूँ और निर्बाध भी
तुम्हारी व्यस्तता और खालीपन भी
मैं तुम्हारी हरीतिमा
तुम्हारी सघनता, विरलता भी
रंग हूँ तुम्हारा,
गति और ठहराव भी
मैं तुम्हारा उछाह
और अवसाद भी
जोगी, मैं तुम्हारे इंद्रधनुष का वितान हूँ
तुम्हारी ज्योति का मध्य हूँ
अंत हूँ, प्रारम्भ हूँ
मैं हूँ तुम्हारा विश्वास और अविश्वास भी
समग्र हूँ, सर्वथा हूँ
मैं तुम्हारा भीतर हूँ, बाह्य हूँ
साँसों का प्रवाह हूँ
तुम्हारा राग हूँ, नेह हूँ, अनुराग हूँ
जोगी मैं तुम्हारा चित्र हूँ
तुम्हारी वेदना और राहत भी
चेतन और अवचेतन तुम्हारा
तुम्हारा आभार और मुक्ति हूँ मैं
जोगी मैं तुम हूँ
और तुम मैं हो !
और यह कोई व्याकरण की गलती नहीं !
जैसे छाल अलग होती है वृक्ष से
वृक्ष अलग होता है धरती से
धरती विलगती है अपनी गति से
वृक्ष अलग होता है धरती से
धरती विलगती है अपनी गति से
हम अलग होंगे
जैसे चेतना अलग होती है मस्तिष्क से
नरम दूब अलग होती है मिट्टी से
जैसे चेतना अलग होती है मस्तिष्क से
नरम दूब अलग होती है मिट्टी से
जैसे फूल अलग होते हैं अपनी डाल
से
झील अलग होती है पानी से
समंदर अलग होता है लहरों से
झील अलग होती है पानी से
समंदर अलग होता है लहरों से
आँखें अलग होती हैं प्रिय से
चमक अलग होती है तारों से
सूर्य अलग होता है अपने ताप से
ख़ुशी अलग होती है उत्सव से
जैसे पानी अलग होता है अपनी मीठेपन से
जैसे आस अलग होती है हृदय से
ह्रदय अलग होता है सम्वेदना से
उसी तरह जोगी
हम होंगे अलग
जैसे जुबान रह जाए और बोल चले जाएँ
उँगलियाँ रहें और तुम्हारा हाथ न थाम पायें
नज़रें उठें और तुम्हें कहीं देख न पायें
अब यह पीड़ा की नदी है जोगी
जिसे कभी किसी समन्दर में नहीं मिलना.
चमक अलग होती है तारों से
सूर्य अलग होता है अपने ताप से
ख़ुशी अलग होती है उत्सव से
जैसे पानी अलग होता है अपनी मीठेपन से
जैसे आस अलग होती है हृदय से
ह्रदय अलग होता है सम्वेदना से
उसी तरह जोगी
हम होंगे अलग
जैसे जुबान रह जाए और बोल चले जाएँ
उँगलियाँ रहें और तुम्हारा हाथ न थाम पायें
नज़रें उठें और तुम्हें कहीं देख न पायें
अब यह पीड़ा की नदी है जोगी
जिसे कभी किसी समन्दर में नहीं मिलना.
मैं विस्मृति से डरती हूँ
कहीं भुला न दे तुम्हारा राग
तुम्हारी आवाज़ हमेशा रहे हृदय में
कहीं भुला न दे तुम्हारा राग
तुम्हारी आवाज़ हमेशा रहे हृदय में
मैं धुंधलेपन से डरती हूँ
ये आँखें, ये चेहरा , तुम्हारा चलना, रुकना
आना और जाना
सब अपनी चमक के साथ बरकरार रहें
ये आँखें, ये चेहरा , तुम्हारा चलना, रुकना
आना और जाना
सब अपनी चमक के साथ बरकरार रहें
मैं चाहती हूँ
तुम्हारी आँखों की तरलता
मुझे हमेशा याद रहे
तुम्हारी गहरी मुस्कान
और छलकती हँसी मेरी दृष्टि का हिस्सा रहे
तुम्हारी आँखों की तरलता
मुझे हमेशा याद रहे
तुम्हारी गहरी मुस्कान
और छलकती हँसी मेरी दृष्टि का हिस्सा रहे
तुम्हारा हर शब्द, अपने पॉज़ के साथ
रफ्तार अपने ठहराव के साथ
रंग अपनी परछाइयों के साथ
दाखिल हो पूरी की पूरी मेरी स्मृति में
रफ्तार अपने ठहराव के साथ
रंग अपनी परछाइयों के साथ
दाखिल हो पूरी की पूरी मेरी स्मृति में
जोगी आजकल आवाज़ें बड़ी दूर से
आती हैं
तुम्हारी इक हँसी मेरे पास रखी है
कि जैसे चाँद हो पूरा
जो छाए तो सभी कुछ नजर आए
जो छुप जाए तो जग हो अँधेरा
भरे से दो नयन भी
झाँकते चश्मे के भीतर से
तुम्हारे साथ चलना
समय रेखा बाँध लेना
निकल पड़ना परिक्रमा पर
सूर्य की, आकाशगंगा की,
अतल ब्रह्माण्ड की,
तुम्हारी चाल, जैसे पवन आया हो
कभी मन्थर, कभी तूफ़ान बनके
धरा पे तन के छाया हो
सुनो जोगी
अधूरे वक्त के ये सफर आधे हैं
कि इनका दूसरा हिस्सा कहीं खोया हुआ है
याकि बस ये विकल ही थे
विकल ही होंगे हमेशा
आह तुम पढ़ते हो वो सब जो नहीं लिखा कहीं
जो किसी ने किसी से,
इस राह से बोला नहीं
तुम्हारी रौशनी भी पास है मेरे
तुम्हारी खुशबुएँ भी बस गयीं
मेरे मुहल्ले में
और तुम्हारे साथ की बातें गगन भर
सब सहेजा है
मेरा मन म्यूज़ियम है
सब सुरक्षित है
तुम्हारी नज़र भी, जो फिर गई है
तुम्हारे शब्द भी, दूरी भी, नीयत भी, भरोसा भी
सब सुरक्षित है
तुम्हारी जगमगाती हँसी
सब रोशन किये है
जग रोशन किये है।
एनीस्थीसिया
सुनो जोगी
जब तुम प्रेम तोड़ना
धीरे धीरे तोड़ना
भरोसा तोड़ना तो
पहले एक छोटा एनीस्थीसिया देना
जोखिम भरे ऑपरेशन में भी मरीज़ को कहा जाता है
चिंता की कोई बात नहीं
ज़हर भी मीठी खीर में देने का आत्मीय रिवाज़ है
मर रहे व्यक्ति के मुँह में जल दिया जाता है
यह जानते हुए भी कि जल अब जीवन नहीं दे पाएगा
हम मृत्युभोज करने और खाने वाली जमात हैं
कठिन और अधूरी चढ़ाइयों में कहते हैं बस ज़रा और
अपने युद्ध हारे हुए वीरों की शौर्य गाथाएं गाते हैं
वैसे मुझे आज ही पता चला कि
दिल टूटने के लिए होता है
भरोसा एक किताबी बात है
धोखे पर टीवी सीरियलों और फिल्मों का एकमात्र कॉपी राइट नहीं है
और इस पूरे वाकये में तुम्हारा नाम महज एक इत्तेफाक है।
सुनो जोगी,
अब मैं जीवन पैक करती हूँ
अब मैं जीवन पैक करती हूँ
एक छोटे झोले में बंद करती हूँ
इच्छाएँ
एक में भविष्य
एक में अतीत और वर्तमान
एक में भविष्य
एक में अतीत और वर्तमान
गले में धड़कता हृदय
आँखों में उतरता अँधेरा
हाथों से छूटती गरमाहट
आँखों में उतरता अँधेरा
हाथों से छूटती गरमाहट
बहुत बहुत सारी बातें
जिनसे भर जाए ब्रह्मांड
पर खाली कोना एक न भर पाए
सागर भर नमकीन पानी
काले टापुओं को डुबाए
कभी न भर पाने वाले घाव
सब समेटती हूँ
जिनसे भर जाए ब्रह्मांड
पर खाली कोना एक न भर पाए
सागर भर नमकीन पानी
काले टापुओं को डुबाए
कभी न भर पाने वाले घाव
सब समेटती हूँ
वक्त अँधेरे का गुलाम हुआ है
अँधेरे हमेशा ऊपर से ही उतरते आए हैं
नीचे जला है जंगल सारा
यह बेतरतीब यादों का ईंधन है
जिनसे ज़रा सी रौशनी बची है
अँधेरे हमेशा ऊपर से ही उतरते आए हैं
नीचे जला है जंगल सारा
यह बेतरतीब यादों का ईंधन है
जिनसे ज़रा सी रौशनी बची है
जीवन
एक बेहद सुंदर शब्द है जोगी
जीवन एक मधुर स्वप्न है
एक बेहद सुंदर शब्द है जोगी
जीवन एक मधुर स्वप्न है
अब मैं सोती हूँ
मेरे पास एक उदास कथा है
कमला सुरैय्या के बारिशों में भीगते पुराने घर जैसी
मैं धरती की तरह घूम रही हूँ इतना तेज
कि चक्कर आ रहा है
मितली फँसी है हर वक्त गले में
जबकि करने को हज़ार बातें हैं
देखने को हज़ार रंग
लेकिन काली गुफा खत्म ही नहीं होती
जीवन और मृत्यु के बीच का छोटा समय
मेरा इंतज़ार करता है
मैं तुम्हारा
तुम खड़े हो वहाँ जहाँ सितारों की चमकीली नदियां बहती हैं
दुखों और सुखों से परे
आहों कराहों की परिधि से बाहर
आँख बंद करना सुख है जोगी
आँख खोलना सब से बड़ा दुःख
वीरता अब सुरक्षित बच निकलने में है
प्रेम दरअसल अस्वाभाविक मृत्यु का दूसरा नाम है
मैं चिल्लाती हूँ बार बार
मेरी आवाज़ निर्वात में बेचैनी से छटपटाती है
और मैंने तय किया है
जीने के लिए दुनिया की सारी उदास कथाएं पढ़ लेनी चाहिए
उस शाम अँधेरे में दो अजनबी आँखें थीं
एक गेट खुला झटके से
और जीवन बन्द हुआ था
वो आखिरी राइड थी
सुनो जोगी, तुम्हें खोजती हुई मैं वहाँ तक जाऊँगी जहाँ तुम ऐसा हृदय बनने से पहले थे। तुम्हारी हँसी की खोज में सारे रंगों के भीतर झाँकूगी। उदास आँखों की चमक वापस लाने की सरोवर से प्रार्थना करुँगी। भारी मन का बोझ उठा लें तितलियाँ। हमेशा की तरह फूलों का सहारा लूँगी और तुम्हारा सारा भार इन नाज़ुक पंखुड़ियों पर डाल आऊँगी। सृष्टि के शुरू से जैसा होता आया है मैं भी नियम नहीं तोडूँगी। अप्रेम का सच सीखूंगी। जीवन के इंद्रधनुष को देखते हुए मृत्यु का स्वागत करुँगी।
सुनो जोगी, यह सच कौन जानेगा कि एक दिन मैं तुम में बदल जाऊँगी।
जीवन और मृत्यु दो समानार्थी शब्द हैं
बर्फ बुरी तरह जलाती है
शान्ति दरअसल धड़कनों का रुक जाना है
और लाल अब सिर्फ लहू है
रास्ते जैसा कुछ होता नहीं
प्रेम के अर्थ चौराहों पर सर धुनते हैं
जोगी तुम हो विजोग के माहिर
सप्तऋषि जाने किस तन्द्रा में सोते हैं
काला रंग बहुत भारी है
ब्लैक होल सा शक्तिशाली
सब कुछ निगलता चला जाता है
मन एक भारी पत्थर है और तन इस आत्मा पर बोझ
अधूरापन एक स्थायी विशेषता
सुनो जोगी
ज़िन्दगी मृत्यु का पूर्वाभ्यास है
सूर्योदय में निखरती हैं अस्ताचल की भंगिमाएं
भूगोल के पार कहीं एक मन बसता है
थोड़ी देर में धरती हिरण्यवर्ण होगी
सुनो जोगी
जो तुम जाग रहे हो भोर के तारे तक
तो आओ
इस हस्ब मामूल ठंडी सुबह में
तारों भरे गहरे आसमान का छाता
ताने
चाँद की डंडी पकड़े
इस छोर चले आओ
चाँद की डंडी पकड़े
इस छोर चले आओ
अमरत्व के दिलेर पैमाने छलक रहे
आज की रात जो जिया वो जियेगा हज़ार बरस
कि कैद है जान किसी जान के भीतर
कोई है मिलन के नगमे गाता हुआ
आज की रात जो जिया वो जियेगा हज़ार बरस
कि कैद है जान किसी जान के भीतर
कोई है मिलन के नगमे गाता हुआ
चले आओ
कि जब साँस रूह सी हल्की हो गयी हो
पलकें किसी नई दुनिया की बुनियाद उठा रही हों
जब पंछी पंछी राग गूँजता हो ओर छोर
कि जब साँस रूह सी हल्की हो गयी हो
पलकें किसी नई दुनिया की बुनियाद उठा रही हों
जब पंछी पंछी राग गूँजता हो ओर छोर
आओ जोगी
कि थोड़ी देर में धरती हिरण्यवर्ण होगी
तुम्हारे रंग में जियेगी
कि थोड़ी देर में धरती हिरण्यवर्ण होगी
तुम्हारे रंग में जियेगी
24.
लड़ाइयाँ बहुत क्रूर होती हैं
सुनो जोगी
लड़ाइयाँ बहुत क्रूर होती हैं
और जब प्रेम में युद्ध होता है
आत्माएं खींच ली जाती हैं
जब वाक् युद्ध जीतते है
उसी पल मित्रताएं हार जाया करती हैं
जब प्रेम के लक्षण ढूंढे से न मिलें
व्यभिचार की काली छायाएँ डस चुकी होती हैं
उसी पल मित्रताएं हार जाया करती हैं
जब प्रेम के लक्षण ढूंढे से न मिलें
व्यभिचार की काली छायाएँ डस चुकी होती हैं
छल, छद्म, धोखे और फरेब
किसी मोह के शब्द नहीं
ये युद्ध की रणनीतियाँ हैं
बार बार तोड़ना और हमेशा तोड़ते ही जाना
अंततः फूलों का हमारी ज़िंदगी से विलुप्त हो जाना है
किसी मोह के शब्द नहीं
ये युद्ध की रणनीतियाँ हैं
बार बार तोड़ना और हमेशा तोड़ते ही जाना
अंततः फूलों का हमारी ज़िंदगी से विलुप्त हो जाना है
सभी कहानियाँ अंत तक नहीं
पहुंचतीं
कुछ उसके ज़रा सा पहले ही हमेशा के लिए अधूरी अनकही छूटती हैं
कुछ उसके ज़रा सा पहले ही हमेशा के लिए अधूरी अनकही छूटती हैं
सुनो जोगी
रात के अंतिम पहर भी कुछ पंछी
चहचहाते हैं
और
चोंच भर शान्ति की खोज में नींद गंवाए जाते हैं।
रात के अंतिम पहर भी कुछ पंछी
चहचहाते हैं
और
चोंच भर शान्ति की खोज में नींद गंवाए जाते हैं।
25.
तुम्हारी हँसी का रंग आसमानी है
तुम्हारी हँसी का रंग आसमानी है
सुनो जोगी
तुम्हारी हँसी का रंग आसमानी है
तुम्हारी हँसी का रंग आसमानी है
अभी एक रेल चलनी है गुलाबी नगर
से
संगम नगर तक
और खुशियों के नगर तक
वहां पर टर्मिनस है
रेल का अंतिम ठिकाना वही खुशियों का नगर है
संगम नगर तक
और खुशियों के नगर तक
वहां पर टर्मिनस है
रेल का अंतिम ठिकाना वही खुशियों का नगर है
ज़रा सी हँसी मेरे पास भी है
ज़रा से डर भी हैं
बहुत सी है दिलेरी जूझने की
समन्दर के अहम् से
रात गहरी है घनी है
खत्म तो होनी ही है फिर भी
सवेरा आएगा, रोके किसी के कब रुका है
ज़रा से डर भी हैं
बहुत सी है दिलेरी जूझने की
समन्दर के अहम् से
रात गहरी है घनी है
खत्म तो होनी ही है फिर भी
सवेरा आएगा, रोके किसी के कब रुका है
मुझे बस हँसी आती है
भरम कितने ख़याली हैं
भरम कितने ख़याली हैं
26.
चक्रवात सी आती हैं तुम्हारी यादें
चक्रवात सी आती हैं तुम्हारी यादें
सुनो जोगी
चक्रवात सी आती हैं तुम्हारी यादें
और घुमड़ आते हैं काले मेघ
फिर टूट के पानी बरसता है
चक्रवात सी आती हैं तुम्हारी यादें
और घुमड़ आते हैं काले मेघ
फिर टूट के पानी बरसता है
इतनी भारी बारिश
और धूल भरी आँधी सी छाती है तुम्हारी याद
कि सारे घाव खुल जाते हैं
टीसती है पीर बेतरह
और रुका हुआ रक्त बह निकलता है
और धूल भरी आँधी सी छाती है तुम्हारी याद
कि सारे घाव खुल जाते हैं
टीसती है पीर बेतरह
और रुका हुआ रक्त बह निकलता है
कभी तो ऐसे आती है याद तुम्हारी
कि घुमड़ घुमड़ छाये मेघ
तड़प तड़प कौंधे बिजलियाँ
तपते मरुथल में
और आखिर तक बरसे न एक बूँद पानी
कि घुमड़ घुमड़ छाये मेघ
तड़प तड़प कौंधे बिजलियाँ
तपते मरुथल में
और आखिर तक बरसे न एक बूँद पानी
आँखों में ईचिंग होती है
मैं गुलाब जल डालती हूँ
लगता है थोड़ी देर
फिर रिलैक्स हो जाता है
मैं गुलाब जल डालती हूँ
लगता है थोड़ी देर
फिर रिलैक्स हो जाता है
भीतर होती है ईचिंग
अंदर बहुत सारा गुलाब जल है
छलक छलक आता है आंखों से
बहुत तेज़ लगता है
फिर रिलैक्स हो जाता है
अंदर बहुत सारा गुलाब जल है
छलक छलक आता है आंखों से
बहुत तेज़ लगता है
फिर रिलैक्स हो जाता है
27.
तुम्हारी उंगलियों से रस बरसता है
तुम्हारी उंगलियों से रस बरसता है
सुनो जोगी
तुम्हारी उंगलियों से रस बरसता है
कि जैसे चौदहवीं के चाँद से अमृत बरसता है
तुम्हारी उंगलियों से रस बरसता है
कि जैसे चौदहवीं के चाँद से अमृत बरसता है
तुम्हारी नज़र जादू है
तुम्हारे देखने भर से टहक कर फूल खिलते हैं
बवंडर धूल के भी रेशमी किरनो में ढलते हैं
तुम्हारे देखने भर से टहक कर फूल खिलते हैं
बवंडर धूल के भी रेशमी किरनो में ढलते हैं
अमलतासों का खिलना, महकना, छाना, खुमार होना
दहकना गुलमोहर का
लाल हो जाना
पिघलना आग का तपते पलाशों में
तुम्हारी साँस है जोगी
दहकना गुलमोहर का
लाल हो जाना
पिघलना आग का तपते पलाशों में
तुम्हारी साँस है जोगी
नदी की धडकनों का बेतहाशा तेज
हो जाना
कि तट पर तुम खड़े हो
तुम्हें छूती हवा का वेग हो जाना
कि तट पर तुम खड़े हो
तुम्हें छूती हवा का वेग हो जाना
सुनो जोगी
कहीं एक दिशा बहती है
बहुत मुमकिन है वो पूरब ही होगी
जहां हर वक्त मौसम भोर का रहता
वहां हर वक्त पूनम चाँद रहता
कहीं एक दिशा बहती है
बहुत मुमकिन है वो पूरब ही होगी
जहां हर वक्त मौसम भोर का रहता
वहां हर वक्त पूनम चाँद रहता
कहीं कंधे से एक रेखा गुजरती है
या शायद पीठ के वर्तुल में रहती हो कहीं
मेरीडियन लाइन
तुम्हारे दाब से धरती भी हंसती है, सिहरती है
या शायद पीठ के वर्तुल में रहती हो कहीं
मेरीडियन लाइन
तुम्हारे दाब से धरती भी हंसती है, सिहरती है
सितारे देखने तुमको धरा के पास
आ जाते
जहाँ तुम बैठ जाते हो
वहीं सब बैठ जाते हैं
जहाँ तुम बैठ जाते हो
वहीं सब बैठ जाते हैं
28.
मैं तुम्हें माँ की तरह याद करती हूँ
मैं तुम्हें माँ की तरह याद करती हूँ
सुनो जोगी
मैं तुम्हें माँ की तरह याद करती हूँ
मैं तुम्हें माँ की तरह याद करती हूँ
माँ जो गई सितारों में
और तुम हुए जैसे धरती का सितारा
क्या कहूँ कि एक ऐसी तुम्हारी बस्ती है इस जमीन की
जहाँ कोई घोड़ा, तांगा, जहाज नहीं जाता
कोई रेल नहीं जाती तुम तक
कोई पगडण्डी, कोई शाहराह
और तुम हुए जैसे धरती का सितारा
क्या कहूँ कि एक ऐसी तुम्हारी बस्ती है इस जमीन की
जहाँ कोई घोड़ा, तांगा, जहाज नहीं जाता
कोई रेल नहीं जाती तुम तक
कोई पगडण्डी, कोई शाहराह
सिर्फ एक विराट व्याकुलता है
जो सीधे तुम्हारे नगर को जाती है
तुम्हारा घर निगाहों की ज़द में नहीं
पर मेरा हृदय वहीं छूट गया है
जो सीधे तुम्हारे नगर को जाती है
तुम्हारा घर निगाहों की ज़द में नहीं
पर मेरा हृदय वहीं छूट गया है
खुशियों का शहर एक स्वप्न हुआ
और तुम हुए स्वप्न के सारथी
जाने कहाँ गुम हुए
कि मेरा शानदार जीवन रथ ठहर गया
और तुम हुए स्वप्न के सारथी
जाने कहाँ गुम हुए
कि मेरा शानदार जीवन रथ ठहर गया
सुनो जोगी
वो सात समुद्र तट मिलकर पुकारते हैं
ऊंचे स्वर में तुम्हारा नाम
सुवर्णरेखा के मैंगरूवों में तुम्हारी छाया आज भी दीखती है
तुम अब भी तैर रहे हो उड़ीसा के बैकवाटर में
वो सात समुद्र तट मिलकर पुकारते हैं
ऊंचे स्वर में तुम्हारा नाम
सुवर्णरेखा के मैंगरूवों में तुम्हारी छाया आज भी दीखती है
तुम अब भी तैर रहे हो उड़ीसा के बैकवाटर में
धरती की वो अंतिम सात पनीली
दीवारें
रेत पर उगते, गायब होते सुर्ख फूल
तुम्हारे हाथों से बिखरी ज़िन्दा सीपियाँ
तुम्हारी खुशी का उन्मत्त जवाब देते ज्वार
रेत पर उगते, गायब होते सुर्ख फूल
तुम्हारे हाथों से बिखरी ज़िन्दा सीपियाँ
तुम्हारी खुशी का उन्मत्त जवाब देते ज्वार
मेरा आसमान तुम्हारी लाखों
चहलकदमियों का गवाह है
सुनो जोगी
माना कि अंतिम यात्रा पूर्ण हुई
पर ऐसे कोई किसी को नहीं भूलता
हम तो मृतकों तक को हर बरसी पर
धरती पे ले आते हैं जिमाने
माना कि अंतिम यात्रा पूर्ण हुई
पर ऐसे कोई किसी को नहीं भूलता
हम तो मृतकों तक को हर बरसी पर
धरती पे ले आते हैं जिमाने
सुनो जोगी
याद एक ज़िन्दा शगल है
और मैं तुम्हें माँ की तरह अथाह बेचैनी से सुमिरती हूँ।
याद एक ज़िन्दा शगल है
और मैं तुम्हें माँ की तरह अथाह बेचैनी से सुमिरती हूँ।
रागों में मालकौंस
सुनो जोगी
जब कुछ नहीं होता
तब तुम होते हो
जब सब कुछ होता है
तब भी तुम ही होते हो
तुम रागों में मालकौंस होते हो
देवों में शिव
ग्रहों में पृथ्वी
और असीम में अंतरिक्ष
मृत्यु तुम हो जोगी
जीवन तुम
प्रेम और अप्रेम तुम
तुम शून्य होते हो
तुम ही होते हो सृष्टि
तुम होते हो अस्तित्व और तुम ही विस्तार
इन्द्रियों में दृष्टि हो तुम
प्रेम में मृत्यु
जीवन मे होना हो तुम
और फिलहाल मैं मृत्यु के गहन आलिंगन में
जीवन के पूरे उत्ताप से भरी
तुम्हारी निःशब्द निःसंग घाटी में गहरे उतर रही हूँ
सुनो जोगी
तुम्हारे शब्द मिसरी हैं
तुम्हारी छुअन फाहा है
तुम्हारी शह उदासी है
तुम्हारी मात है आँसू
ये दुनिया भीगती है, डूबती है
कोई जोगी नहीं आता
नहीं आता कोई जोगी
ये दुनिया ताकती है
कि बढ़के सोख ले दरिया दुखों का
कि कोई राग तो ऐसा सुनाए
पखावज थाप दे और दर्द का कोरस ख़तम हो
जैसे बारिशें आती धरा का ताप हरने को
कोई बरसात तो बरसे कि भीतर ठंड पड़ जाए
संध्या नवोदिता
जन्मस्थान- बरेली
जन्मतिथि 12 सितम्बर 1976
शिक्षा- बीएससी, एमए इतिहास, एलएलबी , पत्रकारिता (रुहेलखण्ड विश्वविद्यालय)
कवि ,अनुवादक ,व्यंग्य लेखक और पत्रकार , छात्र राजनीति में सक्रिय भूमिका ,छात्र- जीवन से सामाजिक राजनीतिक मुद्दों पर लेखन , आकाशवाणी में बतौर एनाउंसर -कम्पीयर जिम्मेदारी निभाई . समाचार-पत्र,पत्रिकाओं ,ब्लॉग और वेब पत्रिकाओं में लेखन.
कर्मचारी राजनीति में सक्रिय, कर्मचारी एसोसियेशन में दो बार अध्यक्ष, जन-आंदोलनों और जनोन्मुखी राजनीति में दिलचस्पी.
हंस, लमही, आजकल, अहा ज़िन्दगी, इतिहास बोध, विज्ञान प्रगति, दस्तक, समकालीन जनमत, आधी ज़मीन, स्त्री मुक्ति, नागरिक, रेतपथ , रचना उत्सव, भोर, माटी , गाथान्तर आदि पत्रिकाओं में कविता प्रकाशन, आकाशवाणी में लगातार कविता पाठ.
पता: 25, यमुना विहार
द्रौपदी घाट , इलाहाबाद -211014
फोन नम्बर- 9839721868
जैसे मेरे मन का राग उधर पहुँचा हो और मेरी दशा व्यक्त हो गयी हो जिसे आजकल शब्द नहीं मिल रहे थे ........बेहतरीन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसमकालीन कविता में विषय,कहन और ताजगी के साथ प्रभावपूर्ण कविताएँ।बधाई आपको।
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (03-07-2016) को "मिट गयी सारी तपन" (चर्चा अंक-2654) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
अच्छी कविताएं, दार्शनिक अंदाज़ लिए हुए।
जवाब देंहटाएंइन कविताओं की उजास दूर तक जाती है।
जवाब देंहटाएंअजीब संयोग है संध्या, कल ही सोचा कि फेसबुक पर सब पढ़ नहीं पाती हूँ तो अपनी ये जोगी सीरीज तुमसे मेल करने को कहूँ और देखो मन की मुराद पूरी हो गई। अब आराम से पढूंगी, सावन का यह तोहफा खूब रहा। तुम्हे हार्दिक बधाई, सुशील जी को धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर संकलन है
जवाब देंहटाएंवाह!अद्भुत है भावो को शब्द देना,
जवाब देंहटाएंतरंगित करता है नदी के जल की तरह कविता पढ़ते हुए बहते जाना, शब्द रुपी पतवार के सहारे,
मुग्ध करता है अक्षरों का मिश्रण,
गाता है मन का प्रत्येक कंपन,
जिसे छू सकता है बस संवेदना का आलिंगन,
धन्यवाद आपको,अद्भुत है आपका लेखन 💐💐
बहुत सुन्दर। प्रेमिका के मन मे उठने वाली सभी तरह के भावों को बेहतरीन शब्दों के चयन के साथ इतनी खूबसूरती से उकेरा गया है कि इसकी जितनी भी तारीफ़ की जाएं वह कम हैं। बार बार पढ़ने के बाद भी नयापन महसूस होता है।
जवाब देंहटाएंअति सुंदर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद संध्या ।
संध्या जी की इस सिरीज़ की सारी कविताएं मैं फेसबुक के माध्यम से पढ चूका हूँ। आपने जिस जीवंतता से मानवीय प्रेम के जज्बातों को सामने रखा है वो काबिले तारीफ है। सारी कविताओ को एक जगह पर देखना पाठको के लिए और सुलभ है । आपको बहुत-बहुत बधाई।
जवाब देंहटाएंSandhya Ji KO mera dil se aabhaar avam dhanyawaad.aapki kavitaon me ek jivit kirdaar ka anubhav pratit hota hai jisme samvedna ,prem talkhi aur jazbaat jhalakte hain.aapki kavitayen hridayesparshi avam mumsparshi hain Jo man,aatma aur chhitt KO shaant karta hai.main aapki lekhni avam aapki rachnaon ke ujjwal bhavishye KI kaamna karta hoon.
जवाब देंहटाएंSandhya Ji KO mera dil se aabhaar avam dhanyawaad.aapki kavitaon me ek jivit kirdaar ka anubhav pratit hota hai jisme samvedna ,prem talkhi aur jazbaat jhalakte hain.aapki kavitayen hridayesparshi avam mumsparshi hain Jo man,aatma aur chhitt KO shaant karta hai.main aapki lekhni avam aapki rachnaon ke ujjwal bhavishye KI kaamna karta hoon.
जवाब देंहटाएंहमने सब देखा और सुना । ☺ आपकी कविताओं का एक जगह होना सच में सुखद है। बहुत सुंदर शब्द। आज फिर से सब एक साथ पढ़ने को मिल गया। बहुत बधाइयाँ और ढेर सारा प्यार।����
जवाब देंहटाएंमेरे लिए ये महज़ कविताएं नहीं है । यह कविताओं के रूप में प्रेम यात्रा है जिसमे हर कविता एक पड़ाव को व्यक्त करती है । शायद आप भी इस यात्रा से कभी गुजरें , गुजर चुके हो या अभी गुजर रहे हों । इस यात्रा का कोई भी पड़ाव हों , हर पड़ाव पर इनमें से एक कविता आपको खुद से जोड़ लेंगी । आपको लगेगा कि वो आपकी ही भावनात्मक अभिव्यक्ति है ।
जवाब देंहटाएंसंध्या जी का शुक्रिया ..हमें इस यात्रा का साथी बनाने के लिए ।
सुशील जी ने संध्या नवोदिता की 'सुनो जोगी' सीरीज को इकट्ठा प्रकाशित कर बहुत बढ़िया किया। यह संध्या जी की दमगर कविताएँ हैं। मुझे प्रिय भी है।
जवाब देंहटाएंपिछले एक दशक से संध्या नवोदिता की कविताओं से रूबरू होता रहा हूं।
जवाब देंहटाएंअलग-अलग भावभूमि और मिजाज की कविताओं में जीवन के प्रति विशेष अनुराग और इंसानियत का पक्षपोषण ही पाया है। प्रेम, प्रकृति, श्रम, शोषण, स्त्री चेतना, मानवाधिकार संबंधी कविताएं संध्या ने तबीयत के साथ लिखी हैं। 'सुनो जोगी' सबसे अलग, असरदार और बड़े भावभूमि की कविता है। सुनो जोगी सीरीज की सारी कविताएं अलग-अलग भी पूर्ण हैं और क्रमबद्धता में भी शानदार। सुनो जोगी के भीतर से बड़ा होता रचनाकार झांक रहा है। अनुभव के धरातल पर खड़ी संध्या की वैचारिकी एक साथ गहराई और ऊंचाई में तरंगित हो रही है। शुभकामनाएं।
बहुत सुंदर मर्मस्पर्शी कविताएँ
जवाब देंहटाएंहार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ संध्या !