साभार - गूगल |
न कोई कल्पवृक्ष
न कामधेनु
न सपने में कोई देवता
आयेगा पृथवी का दु:ख हरने
दुखों के व्रण बस रिसते रहेंगे
कठमुल्ला भी कलमा पढ़ते रहेंगे
न वेद न संविधान
अबलाओं की लुटती अस्मत बचाएँगे
न नेता न मंत्री न सरकारें
बचा पाएँगे हत्यारों से निरीह जनता
यह जनतंत्र भीड़तंत्र का रचाव मात्र होगा
जो सुबह की छाती पर
रोज़ उठेगा धधकता सूर्य सा
पर ढल जाएगा क्षितिज पर हर साँझ-सा।
जनता की उम्मीदें, विश्वास सब
प्रेत बन घुमेंगे दसों दिशायें
फिर भी किल्विष आत्माएँ ढूँढ लेंगी उन्हें
और पकड़ ले जाएँगी बूथों तक
जबरन वोट डालने।
सड़कों पर लामबंद होंगे लोग फिर
उबलेंगे नपुंसक विचारों की आँच में
चीखेंगे,चिल्लाएँगे
बिलखेंगे,बिलबिलाएँगे
और लौट जाएँगे अपने-अपने कुनबों में वापस
कुंद हो जाएँगी उनकी आवाज़ें
बुझी हुई, राख-सी।
गावों में धूल,
संसद में गुलदस्ते फिर देखे जाएँगे
न सच होंगे न सपने
सच की तरह सपने
सपनों से सच होंगे।
दूर से सब लगेंगे अपने,
हाँ, इस तंत्र का यही
ताना-बाना होगा।
akshar shabd bante hain,aah tej bante hain,niraasha jab gahri ho jati hai to aasha ki kirno ka sanchaar hota hai......
जवाब देंहटाएंaaj ki paristhiti ka jo khaaka aapne kheencha hai wah sajeev bankar ubhra hai,bahut hi achhi rachna......
बहुत ही अच्ठी कविता
जवाब देंहटाएंbahut he acchi kavita likhi hai aapne...
जवाब देंहटाएंवाह सुशील जी आपका ये दूसरा ब्लॉग देखकर बहुत अच्छा लगा और आपकी एक बढ़िया कविता पढ़्ने को मिली।
जवाब देंहटाएंनव वर्ष की एक बार फिर शुभकामनाएं।
बहुत खूबसूरत कविता, नयी सोच
जवाब देंहटाएंगावों में धूल,
जवाब देंहटाएंसंसद में गुलदस्ते फिर देखे जाएँगे...
न सच होंगे न सपने,
सच की तरह सपने
सपनों से सच होंगे।
बढ़िया कविता है सुशील जी। तंत्र से निराश हर इंसान की आवाज झंकृत होती है इस कविता में।
हिन्दी ब्लॉग जगत में आपका हार्दिक स्वागत है, मेरी शुभकामनायें.....आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्त करेंगे .....हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।
जवाब देंहटाएंप्राइमरी का मास्टर का पीछा करें