साभार - गूगल |
कैनवस पर
इन दिनों वह
आज़ादी के इतने सालों की
तमीज़ से गुज़रे हुए
एक आदमी की तसवीर
उकेरने की तदबीरें करता रहा है
पर रंगों की असहमति ने
अपनी दुनिया से बेदखल कर
उसे हर बार
अपनी ऊब के साथ
आदमी की भीड़ से दूर ,
कहीं सुनसान में
ला खड़ा किया है
जहाँ विचारों की भीड़ में
वह हमेशा
एक रंगहीन बेलौस
चेहरे से मिलता रहा है
जिसमें हिन्दुस्तान की पूरी तफ़सील मौजूद है।
कैनवस पर
इन दिनों
हाथ और रंग के बीच
एक लडाई - सी छिड़ी हुई है
आंखें गवाह हैं कि कूचियाँ
रंगों के पक्ष में चली गई हैं ,
लकीरें भी लीक से हट गई हैं
रंग बिफ़रते हैं कि
हाथ की गिरफ़्त में
अब उसकी रौनकें बिगड़ रही हैं
क्योंकि हिन्दुस्तान कोई
घिसा-पीटा बदरंग आदमी का
खंडहर नहीं हो सकता।
वह तो
चिकने चेहरों पर चमकता है
कुर्सी पर आसीन रहता है
अपनी हुलिया का रोब-गालिब करता है
अपने मातहतों में
और लश्कर के साथ
सड़कों पर धूल उड़ाता चलता है
चमचमाती गाड़ियों में।
रंग भी उसी के साथ चलना चाहते हैं।
पर चित्रकार को इतने सालों के
रंगसाजी का अनुभव बेचैन करता है कि
रंग यहां तरह-तरह के हैं
जिन पर रंग अभी चढ़े हैं
वे सब सुशासन के मुखौटे हैं
असली चेहरा तो
उस आदमी का है
जो सपनों को अपनी
पीठ पर लाद पथरीले जनपथ पर
खाली पाँव चल रहा है वर्षों से
और झुर्रियों की दुकान बन
अब बाज़ार में लटक रहा है
उसे गौर से देखो
उसका रंग कितना उतर गया है!
वह आदमी स्वशासन के इतने सालों से
राहें ताक रहा है
नये रंग की आहटों की।
पर वह रंग अभी
समय की कोख में पल रहा है और
धीरे-धीरे दिमाग की शिराओं में
जम रहा है।
उसे तसकीन है कि
वह रंग हर आदमी के
लहू में
बदलाव की आंधी बनकर
एक दिन दौड़ेगा।
लेकिन
कैनवस पर
इन दिनों
जगह-जगह चिकटे धब्बे
इस बात के सबूत हैं कि
यह रंग उस कलाकार के साथ नहीं है
जो हिन्दुस्तान की तसवीर
उकेरने की तदबीरें करता रहा है।
वाह क्या बिम्ब उकेरा है मित्र
जवाब देंहटाएंएक रचनाकार का आत्मसन्घर्ष कितना तीखा और एकाकी है।जो कहना चाहता है वह बाज़ार को स्वीकार नही और जो ग़लत है वह कहते आत्मा कचोटती है।
वाह
bahut sundar kavita, padhne me ras bana raha
जवाब देंहटाएं---आपका हार्दिक स्वागत है
चाँद, बादल और शाम
susheelji aapne to kamaal kar dia kya rMg bhare haiM apni kavita me bdhaai
जवाब देंहटाएंअसली चेहरा तो
जवाब देंहटाएंउस आदमी का है
जो सपनों को अपनी
पीठ पर लाद पथरीले जनपथ पर
खाली पाँव चल रहा है वर्षों से
और झुर्रियों की दुकान बन
अब बाज़ार में लटक रहा है
Waah....! Sushil ji bhot acchi rachna....kmaal ki...!!
Azad hindustan ke laghbhag 60-62 varshon ke baad bhi swashasan/sushasan ke dayre se desh ka ek bada hissa bahar hai. Wah abhav grast, badhaal aur badrang hai aur use nirantar ek naye rang ki talash hai.Iska sazeev chitran karne ka sarthak prayas Sushil ji ne apni is taza rachna me kiya hai.
जवाब देंहटाएंbahut achchhi kavita likhi hai sushil bhai.
जवाब देंहटाएंअद्भुत
जवाब देंहटाएंअद्भुत
अद्भुत
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अद्भुत
VAKAAEE SASHAKT RACHNA HAI . HOLI KEE MUBAARAQ .
जवाब देंहटाएंsach ne Samaj ka ek Bhag abhi bhi Rango se Marhum hai.
जवाब देंहटाएं"Aapko Holi Mubarak ho"
chandan
अति सुन्दर ..
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना धन्यवाद!
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