मंगलवार, 17 मार्च 2009

यह महुआ के फूलने का मौसम है

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यह पेड़ों के नंगेपन की ओर
लौटने का मौसम है

अपने पत्ते गिराकर
पेड़ कंकाल-से खड़े हैं पहाड़ पर
पूरी आत्मीयता से
अपने सीने में
जंगल वासियों के पिछले मौसम की
दुस्सह यादें लिये

जंगलात बस्तियों तक पहुँचती
वक्र पगडंडियाँ
सूखे पत्तों और टहनियों से पूर गयी हैं
जिनमें सांझ से ही आग की लड़ियाँ
दौड़ रही हैं सर्पिल

दमक रही है पहाड़ की देह
रातभर आग की लपटों से ।
पहाड़ के लोगों ने जंगली रास्तों में
अगलगी की है,

पहाड़ और जंगल फिर से
नये जीवन में लौट आने की प्रतीक्षा में है
पहाड़िया झाड़-झांखड़ भरे रास्ते
और जमीन साफ़ कर रहे हैं

पहाड़ी जंगलों में यह महुआ के फूलने का मौसम है
प्रवास से लौटी कोकिलें
बेतरह कूक रही हैं और
फागुन में ऊँघते जंगलों को जगा रही है

टपकेंगे फिर सफेद दुधिया
महुआ के फूल दिन - रात
पहाड़ी स्त्रियाँ, पहाड़ी बच्चे बिनते रहेंगे
पहाड़ के अंगूर
भरी साँझ तक टोकनी में

धूप में सूखता रहेगा महुआ दिनमान
किसमिस की तरह लाल होने तक

गमक महुआ की फैलती रहेगी
जंगल वासियों के तन-मन से
श्वाँस – प्रश्वाँस तक ,
जंगल से गाँव तक उठती पूरबाईयों के झोंकों में

गूजते रहेंगे महुआ के मादक गीत
बाँसुरी की लय मान्दर की थाप पर
घरों, टोलों, बहियारों में...

वसंत के आखिरी तक यह होता रहेगा कि
नये पत्ते पहाड़ को फिर ढक लेंगे तेजी से
फल महुआ के कठुआने लगेंगे

जंगल के सौदागर मोल- भाव करने महुआ के
आ धमकेंगे बीहड़ बस्तियों तक और
औने - पौने दाम में पटाकर
भर -भर बोरियाँ महुआ
बैलगाड़ियों - ट्रैक्टरों में लाद
कूच कर जायेंगे शहरों को

थोड़े बहुत महुआ जो बच पायेंगे
व्यापारियों की गिद्ध दृष्टि से
पहाड़िया के घरों में ,
ताड़ - खजूर के गुड़ में फेंटकर
भूखमरी में पहाड़न चुलायेंगी
हंडिया - दारू
और दिन -दुपहरी जेठ की धूप में
तसलाभर मद्द लिये भूखी -प्यासी
बैठी रहेगी हाट -बाट में
गाहकों की प्रतीक्षा में साँझ तक

नशे में ओघराया उसका मरद
पड़ा रहेगा जंगल में कहीं
अपने जानवरों की बगाली करता हुआ ।
Photobucket

33 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत जीवंत चित्रण किया है भाई सुशील कुमार जी आपने। मुझे मेरे घर की याद दिला दी इस कविता में जब मैं अपने दोस्तों के साथ महुआ का सुबह-सुबह गिरना और उसे पहाड़ी लड़कियों का तन्मयता से बिनना देखता था।बहुत खूब ।

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  3. मैं झारखंड से हूँ। यह कविता झारखंड के इस मौसम का सच्चा बयान है। कविता काफ़ी प्रभाव उत्पन्न कर रही है और लगता है कि सब सामने घटित हो रहा है।

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  4. बहुत ही सुन्दर शब्द चित्र खींचा है-सब कुछ चल चित्र सा..बधाई इस उम्दा रचना के लिए.

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  5. बहुत सूक्ष्‍मता से पहाडियों का जीवन शैली का ... खास इस मौसम की जीवनशैली का चित्र खींचा है ... मैं झारखंड से ही हूं ... इसलिए आपकी कविता की यथार्थता को भी महसूस कर सकती हूं ... कल ही पढा था ... पर कमेंट देने के लिए आज फिर से खोलकर पढा।

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  6. Priy sushil ji
    namaskar
    Abhi abhi aapki site par gai thi aapki kavitayein bahut achhi lagi.

    aapke parivar ke bare me jankar bahut dukh hua lekin aap jaise

    mahan vyakti ke bare me jankar aap par garva ka anubhav bhi hua.

    mAi bhi Bihar se hi hun Patna se aur karib 12 varsho se Atlanta

    Georgia me rahti hun.Sahitya se bahut lagav hai esliye padhti rahti

    hun
    kusum

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  7. अच्‍छी लगी कविता अपना गांव याद आया

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  8. sushil ji achchhi rachanin hain aapki. aabhar mitr suchana pahunchane ke liye, abhi ek sarsari nigah hi mari hai, mark kar liya hai, samay milne pr fir padhunga aur fir vistar se baat karunga.
    विजय गौड http://likhoyahanvahan.blogspot.com
    C-24/9 Ordnance Factory Estate
    Raipur, Dehradun- 248008

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  9. fromसंपादक (सृजनगाथा) dateWed, Mar 18, 2009 at 7:57 AM
    subjectRe: [नई पोस्ट देंखे-लि ंक नीचे] यह महुआ के फूलन े का मौसम है
    mailed-bygmail.com

    भाई जी, बहुत अच्छा प्रयास है । बधाईयाँ ।

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  10. बहुत ही सूक्ष्‍मता से जीवंत चित्र खींचा है....!!

    अच्‍छी लगी .....बधाई...!!

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  11. सुन्दर भाव........
    बेहतरीन अभिव्यक्ति है आपकी, सुन्दर रचना

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  12. सुशील जी अतिसुन्दर रचना । आपने गांव की तस्वीर चित्रित कर दी । बधाई

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  13. sunder kavita,pura chitra ankhon ke samne agaya.

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  14. मुझे भी महुए की महक याद आ गयी, और महुआ रोटी का सोंधापन भी. सजीव चित्रण किया है आपने महुआ और वसंत आगमन का.

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  15. आप सभी के प्यार का आभारी हूँ।

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  16. आपकी कविता ने झाड़खंड के ग्रामीण जीवन से पुनः जोड़ दिया.

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  17. Prakriti ke vibhinn tevron ke bich jeevan
    jeete, halat se smjhota karte rahne ko vivash paharia janjati ke jeevan aur usmen bahari logon ki ghuspaith ka satik chitran.Badhai.

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  18. किसने कहा है किसी से

    कि पेड़ कपड़े नहीं बदलते

    पर वे छिप छिप के नहीं बदलते

    आपके सामने ही होते हैं नंगे

    वे पेड़ है पेड़ ही थे और पेड़ ही रहेंगे।


    सुगंध अपनी बिखेर रहे हैं

    बिखेरते ही रहेंगे

    उनका नंगापन उनकी सुरभि के

    फैलने में बाधक नहीं होता

    क्‍योंकि वहां पर बलात्‍कार नहीं होता।


    तोड़े जाते हैं उनके फल
    वो भी उनकी राजी या कुराजी

    पर चाहे पत्‍थर मार कर लूट लो

    तब भी वे क्रुध नहीं होते

    पेड़ पेड़ ही रहते हैं

    कभी युद्ध नहीं होते

    पेड़ होते हैं बुद्ध

    करते हैं वायु शुद्ध।शुद्ध।

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  19. बहुत ही सुन्दर शब्द चित्र ...बहुत खूब..

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  20. PAHAADEE JEEVAN KAA ITNA SAJEEV
    CHITRAN HINDI KAVITA MEIN BAHUT
    KAM DEKHNE KO MILTA HAI.MAINE PAYA
    HAI SUSHEEL JEE AAPKEE KAVITA MEIN
    CHITA BAHUT HOTE HAIN .YAH AAPKEE
    UPLABDHI HAI.CHITRA KAVITA KE PRAN
    HOTE HAIN."YAH MAHUA KE PHOOLNE KA
    MAUSAM HAI" HINDI KAVYA SAHITYA KEE
    UTKRISHT RACHNAAON MEIN HAI TO KOEE
    ATISHYOKTI NAHIN HAI.

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  21. यह पेड़ों के नंगेपन की ओर
    लौटने का मौसम है

    पतझड़ का बेह्तर चित्रण.

    मुझे पेड़ों की नहीं, संस्कृति की चिन्ता है जिसे अंधे पश्चिमी करण की आड़ में नंगे पन की और ले जाया जा रहा है.

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  22. महुआ महका देखकर, बौराया है आम.
    बौरा-गौरा रम रहे, वर अनंग निष्काम.
    सरस सुगन्धित स्वादमय, हैं महुआ के फूल.
    एक बार जिव्हा चखे, कभी न पाए भूल.

    -divyanarmada.blogspot.com
    -sanjivsalil.blogspot.com

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  23. इतनी अच्छी कविता पढ़वाने के लिए धन्यवाद।

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  24. सुशील भाई, पहली बार इधर आया,बेहद प्यार मिला जबकि बचपन आपके शहर में बीता,आपकी कविताएं मन को छू गयी ,कोसी वाली कविता भी अच्छी लगी, मैने कोसी का दंश झेला है…मेरे ब्लाग पर आपका स्वागत है।

    जवाब देंहटाएं
  25. सुशील भाई, आभार,लिंक जोडने के लिये। हमारे संबन्ध और मजबूत हो यह प्रयास करता रहूंगा। पुन: शुभकामनाएं…

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  26. सभी कवितायेँ अच्छी हैं सहजता, सरलता और शब्द चित्र से भरपूर!

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  27. jabardast rachana hai..... kavita se mahuaa ki khusbu spast aa rahi hai.. Jandaar kavita, Shandar kavita..

    Dhanyavad.

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  28. 2009/3/19 sanjiv nigam sanjiv nigam@yahoo.co.in

    Priya Bhai,

    Apka Email aaya aur aapki site ka pata mila. Use pada aur padi aapki bahot behtareen kavita. Mahuve ka zikr Hindi Ki kai kavitaon me raha hai, aur uske karan anayas hi ek aakarshan Mahuve ki taraf hota hai haalanki hamesha shehar wasi hone ke karan maine kabhi is ped ko dekha nahi hai. Aapki kavita ki visheshta yeh hai ki veh apne poore maahual ko sath lekar chali hai. Kavita me yatharth aur kalpna ka sunder samnvay hai. Badhai.


    Sanjiv Nigam,
    Mumbai. Mob.9821285194.

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  29. Sushil ji
    Naya gyanoday ke gharkhand ank me rachnakaro ki rachnayeon ke karan muje gharkhan se or mahuaa se prem ho gaya.ye fool mene dekhe nahi hai ya hum usko alg naam se jante honge par vha ki yuvtion ka mahuaa se shringar ki kalpana kar sakti hoon. vahi yad aa gaya kavita padhkar.
    Kiran Rajpurohit Nitila

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  30. wah bhut hi sajeev chitran kiya hai aapney
    gaon ko jeevan se joodney ke liye sadhuvad

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