साभार : गूगल |
इलहाम हुआ कि
हृदय भी एक हाथ था मेरा
अरसे से मेरी पीठ से बँधा ,
फ़िजूल बंधनों से नधा हुआ।
हृदय हां, अब भी
एक हाथ है मेरा
मुझ आँख के अंधे की
लाठी
इस अंधेर दुनिया के भटकन में ।
और देखो, वह
बुला रहा है मुझे
और तुम्हें भी ।
उसकी आवाज़ गौ़र से सुनो
इस तन-तंबूरे में ।
कह रहा है कोई
सच्ची बात
हित की बात
ओह, सुनी तुमने
पहले कभी
इतनी भली बात !
उसकी टूटन
और नहीं सहूंगा,
अक्षर-अक्षर
हृदय के कहन का
लोक लूंगा !
इस राह चलते हुए
मन की डींगे
खूब सुनता आया हूं,..अब
अपने हृदय को भी
हाँक लूंगा
इस यात्रा में
हां,..हृदय को भी
अपने साथ लूंगा।
*******
achchhi rachna hai.
ReplyDelete- vijay
बहुत सुन्दर रचना है।बधाई।
ReplyDeleteहृदय हां, अब भी
ReplyDeleteएक हाथ है मेरा
मुझ आँख के अंधे की
लाठी
इस अंधेर दुनिया के भटकन में ।
sach kaha aapane. jitana sundar blog banaya hai,utani hi gambhir kavitaa post ki hai.dhanyavaad.
बहुत सुन्दर और भावपूर्ण।
ReplyDeleteबधाई।
बहुत बेहतरीन भाव-उम्दा रचना.
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ReplyDeleteइतनी गहरी सोच
ReplyDeleteइससे आगे तो
सोच भी हो जाती
है बंद कुंद बूंद।
सुन्दर अभिव्यक्ति है बधाई
ReplyDeleteसुंदर भाव ... बहुत अच्छी रचना।
ReplyDeleteआपकी कविताएं नएपन का अहसास कराती है। सहज और सधे शब्दों के साथ संदेश देती हुई सी। अच्छा लगा पढ़कर।
ReplyDeleteधन्यवाद श्री पुरुषोत्तम कुमार जी। आप कविता के पारखीहैंसुशील कुमार
ReplyDeleteBhai Sushil jee,aapkee kavita khoob
ReplyDeletehai!Ek-ek pankti man ko bhaa gayee
hai.Kavitayen yun hee aapke hriday
se nikaltee rahen aur yun hee hum
sabke hridayon par anand kaa ras
barsaatee rahen.
वाह जी वाह बेहद रचना लिखी है बधाई हो आपको
ReplyDeleteइस राह चलते हुए
ReplyDeleteमन की डींगे
खूब सुनता आया हूं,..अब
अपने हृदय को भी
हाँक लूंगा
इस यात्रा में
भावपूर्ण है यह मन की यात्रा.
सुन्दर अभिव्यक्ति
अति सुंदर भाव लिये है आप की यह कविता. धन्यवाद
ReplyDeleteसुन्दर भावपूर्ण रचना।
ReplyDeleteसादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
आपकी यह कविता हमेम बताती है कि हमें मनमानी ही नही करनी चाहिये, हृदय की आवाज़ पर भी गौर करनी चाहिये। बहुत अच्छा। लिखते रहें।
ReplyDelete--अशोक सिंह ,दुमका।
बहुत खुबसूरत भाव बहुत-बहुत बधाई...
ReplyDeleteहृदय हां, अब भी
ReplyDeleteएक हाथ है मेरा
मुझ आँख के अंधे की
लाठी
इस अंधेर दुनिया के भटकन में ।
इतनी गहरी सोच,सहज और सधे शब्दों के साथ संदेश देती हुई सी।
अच्छा लगा पढ़कर।
sundar,,abhivyakti
ReplyDeleteबेहतरीन रचना।
ReplyDeleteऔर देखो, वह
ReplyDeleteबुला रहा है मुझे
और तुम्हें भी ।
उसकी आवाज़ गौ़र से सुनो
इस तन-तंबूरे में
सुन्दर रचना,............बहुत खूब लिखा है
Waah !! Anootha bimb prayog.....Bahut hi sundar kavita...man mugdh kar gayi...
ReplyDeleteBadhai..
धन्यवाद रंजना जी। आपकी जैसे प्रबुद्ध पाठक प्रतिक्रिया मुझे बेहतर कार्य करने की प्रेरणा देती है।
ReplyDeleteउत्तम रचना ...
ReplyDeleteबहुत सुंदर लिखा आप ने .धन्यवाद
ReplyDeleteसुशील जी
ReplyDeleteकविता की हर पंक्ति हृदय को छू गई।
इस राह चलते हुए
मन की डींगे
खूब सुनता आया हूं,..अब
अपने हृदय को भी
हाँक लूंगा
इस यात्रा में
हां,..हृदय को भी
अपने साथ लूंगा।
बहुत सुंदर पंक्तियां है।
आदरणीय श्री महावीर शर्मा जी,आपका मेरे साईट पर आना मुझे बहुत अच्छा लगा।-
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ReplyDeleteएकदम सटीक रचना बहुत-बहुत बधाई...
ReplyDeleteyah haath un dono haathon se kitnaa behtar Hai!
ReplyDeleteAapki rachnayan hirdya ko sparsh karti hai. Meri anant shubhkamnayan swikar karan. Dhanyabad.
ReplyDeleteDr. U.S.Anand, Dumka.
Bahut gehri baat kahi aapne is kavita ke dwara.Sanvedna aur karm ka samanvit darshan.Badhai.
ReplyDeleteइस पन आकर मुझे
ReplyDeleteइल्हाम हुआ कि
ह्रदय भी इक हाथ था मेरा
अरसे से मेरी पीठ में बंधा
फिजूल बन्धनों से नधा हुआ
सुशिल जी बहुत सुन्दर कल्पना ...!1
बेहतरीन भाव...बधाई...!!
न राग मुझमे है न उमंग मुझमे है .
ReplyDeleteबस कुछ मीठी यादें की तरंग मुझमे है.
तनहा हूँ ये कैसे स्वीकार कर लूँ
ज़िन्दगी की हजारों जंग मुझमे है
नहीं मालूम किस तरह आपकी शुक्रिया अदा करू.
आप हमेशा खुश रहो ये सदा मै दुआ करूँ
आप का ब्लोग मुझे बहुत अच्छा लगा और आपने बहुत ही सुन्दर लिखा है !
ReplyDeleteअच्छा काम हुआ है ! आप और आप के सभी सहयोगियों को बधाई !
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