रविवार, 5 अप्रैल 2009

हृदय भी मेरा हाथ है

साभार : गूगल 
इस पन आकर मुझे
इलहाम हुआ कि
हृदय भी एक हाथ था मेरा
अरसे से मेरी पीठ से बँधा ,
फ़िजूल बंधनों से नधा हुआ।

हृदय हां, अब भी
एक हाथ है मेरा
मुझ आँख के अंधे की
लाठी
इस अंधेर दुनिया के भटकन में ।

और देखो, वह
बुला रहा है मुझे
और तुम्हें भी ।
उसकी आवाज़ गौ़र से सुनो
इस तन-तंबूरे में ।

कह रहा है कोई
सच्ची बात
हित की बात
ओह, सुनी तुमने
पहले कभी
इतनी भली बात !

उसकी टूटन
और नहीं सहूंगा,
अक्षर-अक्षर
हृदय के कहन का
लोक लूंगा !

इस राह चलते हुए
मन की डींगे
खूब सुनता आया हूं,..अब
अपने हृदय को भी
हाँक लूंगा
इस यात्रा में

हां,..हृदय को भी
अपने साथ लूंगा।
*******

37 टिप्‍पणियां:

  1. हृदय हां, अब भी
    एक हाथ है मेरा
    मुझ आँख के अंधे की
    लाठी
    इस अंधेर दुनिया के भटकन में ।
    sach kaha aapane. jitana sundar blog banaya hai,utani hi gambhir kavitaa post ki hai.dhanyavaad.

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  2. बहुत सुन्दर और भावपूर्ण।
    बधाई।

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  3. बहुत बेहतरीन भाव-उम्दा रचना.

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  4. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  5. इतनी गहरी सोच

    इससे आगे तो

    सोच भी हो जाती

    है बंद कुंद बूंद।

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  6. आपकी कविताएं नएपन का अहसास कराती है। सहज और सधे शब्दों के साथ संदेश देती हुई सी। अच्छा लगा पढ़कर।

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  7. धन्यवाद श्री पुरुषोत्तम कुमार जी। आप कविता के पारखीहैंसुशील कुमार

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  8. Bhai Sushil jee,aapkee kavita khoob
    hai!Ek-ek pankti man ko bhaa gayee
    hai.Kavitayen yun hee aapke hriday
    se nikaltee rahen aur yun hee hum
    sabke hridayon par anand kaa ras
    barsaatee rahen.

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  9. वाह जी वाह बेहद रचना लिखी है बधाई हो आपको

    जवाब देंहटाएं
  10. इस राह चलते हुए
    मन की डींगे
    खूब सुनता आया हूं,..अब
    अपने हृदय को भी
    हाँक लूंगा
    इस यात्रा में

    भावपूर्ण है यह मन की यात्रा.
    सुन्दर अभिव्यक्ति

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  11. अति सुंदर भाव लिये है आप की यह कविता. धन्यवाद

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  12. सुन्दर भावपूर्ण रचना।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
    कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

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  13. आपकी यह कविता हमेम बताती है कि हमें मनमानी ही नही करनी चाहिये, हृदय की आवाज़ पर भी गौर करनी चाहिये। बहुत अच्छा। लिखते रहें।
    --अशोक सिंह ,दुमका।

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  14. बहुत खुबसूरत भाव बहुत-बहुत बधाई...

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  15. हृदय हां, अब भी
    एक हाथ है मेरा
    मुझ आँख के अंधे की
    लाठी
    इस अंधेर दुनिया के भटकन में ।

    इतनी गहरी सोच,सहज और सधे शब्दों के साथ संदेश देती हुई सी।

    अच्छा लगा पढ़कर।

    जवाब देंहटाएं
  16. और देखो, वह
    बुला रहा है मुझे
    और तुम्हें भी ।
    उसकी आवाज़ गौ़र से सुनो
    इस तन-तंबूरे में

    सुन्दर रचना,............बहुत खूब लिखा है

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  17. Waah !! Anootha bimb prayog.....Bahut hi sundar kavita...man mugdh kar gayi...

    Badhai..

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  18. धन्यवाद रंजना जी। आपकी जैसे प्रबुद्ध पाठक प्रतिक्रिया मुझे बेहतर कार्य करने की प्रेरणा देती है।

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  19. बहुत सुंदर लिखा आप ने .धन्यवाद

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  20. सुशील जी
    कविता की हर पंक्ति हृदय को छू गई।

    इस राह चलते हुए
    मन की डींगे
    खूब सुनता आया हूं,..अब
    अपने हृदय को भी
    हाँक लूंगा
    इस यात्रा में

    हां,..हृदय को भी
    अपने साथ लूंगा।

    बहुत सुंदर पंक्तियां है।

    जवाब देंहटाएं
  21. आदरणीय श्री महावीर शर्मा जी,आपका मेरे साईट पर आना मुझे बहुत अच्छा लगा।-

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  22. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  23. एकदम सटीक रचना बहुत-बहुत बधाई...

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  24. Aapki rachnayan hirdya ko sparsh karti hai. Meri anant shubhkamnayan swikar karan. Dhanyabad.
    Dr. U.S.Anand, Dumka.

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  25. Bahut gehri baat kahi aapne is kavita ke dwara.Sanvedna aur karm ka samanvit darshan.Badhai.

    जवाब देंहटाएं
  26. इस पन आकर मुझे
    इल्हाम हुआ कि
    ह्रदय भी इक हाथ था मेरा
    अरसे से मेरी पीठ में बंधा
    फिजूल बन्धनों से नधा हुआ

    सुशिल जी बहुत सुन्दर कल्पना ...!1

    बेहतरीन भाव...बधाई...!!

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  27. न राग मुझमे है न उमंग मुझमे है .
    बस कुछ मीठी यादें की तरंग मुझमे है.
    तनहा हूँ ये कैसे स्वीकार कर लूँ
    ज़िन्दगी की हजारों जंग मुझमे है

    नहीं मालूम किस तरह आपकी शुक्रिया अदा करू.
    आप हमेशा खुश रहो ये सदा मै दुआ करूँ

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  28. आप का ब्लोग मुझे बहुत अच्छा लगा और आपने बहुत ही सुन्दर लिखा है !

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  29. अच्छा काम हुआ है ! आप और आप के सभी सहयोगियों को बधाई !

    जवाब देंहटाएं

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