Sunday, April 12, 2009

बीज

साभार:गूगल
किसानों की देह-गंध
और धरती का सत्व-जल
सोखकर बीज
मिट्टी की कोख़ में
ऋतु की आहट का
बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं।

प्रतीक्षा की यह बेला
कितनी नाजु़क है
हर बीज के लिये !

कुछ तो बह जायेंगे
तेज पानी में
बतास* में,
कुछ सूर्य की तपिश में
जल जायेंगे,
कुछ को चिड़िये-टिड्डे चुग लेंगे
तो कीट-पतंगे कुछ को
घुन लेंगे।

जो बच पायेंगे आपदाओं से
उनकी ही कठोर त्वचा
सहलायेगी ऋतु और
वे सुगबुगाने लगेंगे अखुँआने को,
दरकाने लगेंगे मिट्टी की परत धीरे-धीरे
और कनखे फेंककर धरती पर
नई पौध में बदल जायंगे।

हाँ, बचे रहेंगे बीज इसी तरह
पृथ्वी पर हमेशा
प्रकृति से अहर्निश संघर्ष करके।
{बतास* = हवा,वायु,समीर }

41 comments:

  1. बेहतरीन कविता। आपने बीज के माध्यम से बहुत गंभीर बात कही है।बधाई!

    ReplyDelete
  2. प्रकृति से अहर्निश संघर्ष करके।

    संघर्ष ही तो जीवन है....बहुत खूब लिखा सुशील जी !!!!
    साधुवाद !!!

    ReplyDelete
  3. kavita acchi lagi

    ReplyDelete
  4. मैं कुछ कहना तो चाहता हूँ.....मगर ऐसी सच्ची कविता....या कि सच्ची बात पर मुझे शब्द ही नहीं मिल रहे.......उम्दा या बढ़िया कहना बस औपचारिकता ही होगी....आज कुछ नहीं कहूँगा....!!

    ReplyDelete
  5. very nice poem.
    What is the meaning of Vaataas and Darkane lagenge?

    -Harshad Jangla
    Atlanta, USA

    ReplyDelete
  6. बिल्‍कुल सही ... बहुत बढिया भाव ... जो संघर्ष करते हें ... वही तो जीते हैं ... बहुत बढिया लिखा आपने।

    ReplyDelete
  7. नि:संदेह एक अच्छी कविता है। बधाई स्वीकारें ।

    ReplyDelete
  8. आपने जीवन संघर्ष को एक सुन्दर कविता से समझा दिया,

    ReplyDelete
  9. आदरणीय रति सक्सेना जी और आदरणीय सुभाष नीरव जी का मेरे साईट पर भ्रंमण करने के लिये आभार।

    ReplyDelete
  10. जीवन के संघर्ष का सुंदर चित्रण।

    ReplyDelete
  11. बीज को केंद्र में रख कर रची सुन्दर रचना ..........
    अच्छे भावः है

    ReplyDelete
  12. SUSHEEL JEE,BEHTREEN KAVITA KE
    LIYE AAPKO BADHAAEE.

    ReplyDelete
  13. संघर्ष के बीजोँ
    को शब्दोँ मेँ ढालने
    की बधाई

    ReplyDelete
  14. बेहद सधी हुई अभिव्यक्ति,
    संघर्ष में हर्ष और
    आशा की अक्षय जोत जगाती.
    ========================
    डॉ.चन्द्रकुमार जैन

    ReplyDelete
  15. आपकी कुछ कवितायेँ पढीं और आपकी लेखनी का कायल हो गया. कभी तसल्ली से बैठकर आपकी सारी रचनाएं पढने का मन है. मेरी बधाई और शुबकामनाएं स्वीकार करें.

    ReplyDelete
  16. बेहतर अभिव्यक्ति.

    ReplyDelete
  17. जीवन संघर्ष का अनूठा चित्र। बधाई।

    ReplyDelete
  18. Beej ko pratik ke roop me rakhkar kavi ne kaphi gehri baat kahi hai.

    Sushil ji un chuninda yuva kaviyon me hain jinki kavitaon me zameen se jude hone ka ehsaas aur samay ki nabj dono ko mahsoos kiya ja sakta hai.

    ReplyDelete
  19. संध्या गुप्ता जी की टिप्पणी से मुझे और बल मिला

    ReplyDelete
  20. Susheel ji,
    bahut gambheer bat kahee hai apne is kavita men.khas taur se in panktiyon ne prabhavit kiya.
    जो बच पायेंगे आपदाओं से
    उनकी ही कठोर त्वचा
    सहलायेगी ऋतु और
    वे सुगबुगाने लगेंगे अखुँआने को,
    दरकाने लगेंगे मिट्टी की परत धीरे-धीरे
    और कनखे फेंककर धरती पर
    नई पौध में बदल जायंगे।
    shubhkamnayen.
    HemantKumar

    ReplyDelete
  21. बीज वो नन्‍हे छौने हैं
    वो नन्‍हे चूजे हैं
    जिन्‍हें आना है स‍ृष्टि से बचकर
    सृष्टि के सामने
    जो बचते हैं
    सामने आते हैं
    वही उद्देश्‍य में अपने
    सफलता पाते हैं
    इनकी इस प्रक्रिया को
    पकड़ना इतना आसान नहीं
    जितनी सहजता से
    कवि सुशील ने पकड़ा है
    अपने भावों में जकड़ा है
    भाव बोध इनका तगड़ा है।

    ReplyDelete
  22. सभी ने इतनी बधाई और चुनिन्दा शब्दों का प्रयोग कर दिया कि अब और कुछ कहने को बचा ही नहीं,

    कुल मिलाकर मेरी भी बधाई स्वीकार कर लीजिये.

    आभार.

    चन्द्र मोहन गुप्त

    ReplyDelete
  23. I loved The Poem.
    You are a great poet of urban area.

    ReplyDelete
  24. बिलकुल सही कहा ,यह जीवन भूईंफोर पर ही फबता है !

    ReplyDelete
  25. Bahut sundar.
    Bhadaayee ho.

    ~Jayant Chaudhary

    ReplyDelete
  26. बेहतरीन कविता।

    ReplyDelete
  27. सुशील जी बेहतरीन कविता रूपी फसल बोई है आपने सच दिल जीत लिया आपकी इस कविता ने तो
    वाकई बेहद खूबसूरत

    कुछ तो बह जायेंगे
    तेज पानी में
    बतास* में,
    कुछ सूर्य की तपिश में
    जल जायेंगे,
    कुछ को चिड़िये-टिड्डे चुग लेंगे
    तो कीट-पतंगे कुछ को
    घुन लेंगे।
    ये लाईने तो सच पर आधारित और बेहतरीन भाव बधाई

    ReplyDelete
  28. जी आपकी ये कविता धरती बीज और किसान के साथ मौसम को गुनती-बुनती है...अच्छी भावाव्य्क्ति है,साफ शब्दों और बानगी की अदायगी भी सुंदर है ....बधाई

    ReplyDelete
  29. कुछ तो बह जायेंगे
    तेज पानी में
    बतास* में,
    कुछ सूर्य की तपिश में
    जल जायेंगे,
    कुछ को चिड़िये-टिड्डे चुग लेंगे
    तो कीट-पतंगे कुछ को
    घुन लेंगे।
    ये पंक्तियाँ तो बहुत ही खूबसूरत लगी वैसे तो पूरी ही रचना बहुत अच्छी है बहुत-बहुत बधाई...

    ReplyDelete
  30. बहुत अच्छी कविता ,बधाई और आभार.।

    ReplyDelete
  31. बहुत अच्छी कविता ,बधाई और आभार.।

    ReplyDelete
  32. श्री आशीष खण्डेलवाल जी पहली बार मेरे साईट पर आये हैं। मैं अक्षर जब शब्द बनते हैं की ओर से उनका स्वागत करता हूँ। उनके ब्लॉग टिप्स का मैंने सहयोग भी लिया है अपने ब्लॉग -निर्माण में। आभार सहित।

    ReplyDelete
  33. बीज की कथा और किसान की व्यथा का या यो कहिए किसान की कथा और बीज की व्यथा का बहुत ही मार्मिक चित्रण किया है
    बधाई.
    शोभना चौरे

    ReplyDelete
  34. आप लगातार अच्छा लिख रहे हैं।और अब तो गंभीर पाठक भी आपके ब्लॉग पर आ रहे हैं। आपको बहुत - बहुत बधाई उत्कृष्ट लेखन के लिये।

    ReplyDelete
  35. yakeenan behad gambhir aur bhaavpurn abhivyakti hai.

    sundar srijan ki badhaai.

    Renu Ahuja

    ReplyDelete
  36. bahut der se aa paya bandhu
    idhar kafi pareshan raha.

    kavita par sabkuch kaha ja chuka hai.

    blog aur khoobsoorat ho gaya hai.

    badhai...

    ReplyDelete

टिप्पणी-प्रकोष्ठ में आपका स्वागत है! रचनाओं पर आपकी गंभीर और समालोचनात्मक टिप्पणियाँ मुझे बेहतर कार्य करने की प्रेरणा देती हैं। अत: कृप्या बेबाक़ी से अपनी राय रखें...