साभार:गूगल |
और धरती का सत्व-जल
सोखकर बीज
मिट्टी की कोख़ में
ऋतु की आहट का
बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं।
प्रतीक्षा की यह बेला
कितनी नाजु़क है
हर बीज के लिये !
कुछ तो बह जायेंगे
तेज पानी में
बतास* में,
कुछ सूर्य की तपिश में
जल जायेंगे,
कुछ को चिड़िये-टिड्डे चुग लेंगे
तो कीट-पतंगे कुछ को
घुन लेंगे।
जो बच पायेंगे आपदाओं से
उनकी ही कठोर त्वचा
सहलायेगी ऋतु और
वे सुगबुगाने लगेंगे अखुँआने को,
दरकाने लगेंगे मिट्टी की परत धीरे-धीरे
और कनखे फेंककर धरती पर
नई पौध में बदल जायंगे।
हाँ, बचे रहेंगे बीज इसी तरह
पृथ्वी पर हमेशा
प्रकृति से अहर्निश संघर्ष करके।
{बतास* = हवा,वायु,समीर }
बेहतरीन कविता। आपने बीज के माध्यम से बहुत गंभीर बात कही है।बधाई!
ReplyDeleteप्रकृति से अहर्निश संघर्ष करके।
ReplyDeleteसंघर्ष ही तो जीवन है....बहुत खूब लिखा सुशील जी !!!!
साधुवाद !!!
kavita acchi lagi
ReplyDeletekavita acchi lagi
ReplyDeleteमैं कुछ कहना तो चाहता हूँ.....मगर ऐसी सच्ची कविता....या कि सच्ची बात पर मुझे शब्द ही नहीं मिल रहे.......उम्दा या बढ़िया कहना बस औपचारिकता ही होगी....आज कुछ नहीं कहूँगा....!!
ReplyDeletevery nice poem.
ReplyDeleteWhat is the meaning of Vaataas and Darkane lagenge?
-Harshad Jangla
Atlanta, USA
बिल्कुल सही ... बहुत बढिया भाव ... जो संघर्ष करते हें ... वही तो जीते हैं ... बहुत बढिया लिखा आपने।
ReplyDeleteनि:संदेह एक अच्छी कविता है। बधाई स्वीकारें ।
ReplyDeleteआपने जीवन संघर्ष को एक सुन्दर कविता से समझा दिया,
ReplyDeleteआदरणीय रति सक्सेना जी और आदरणीय सुभाष नीरव जी का मेरे साईट पर भ्रंमण करने के लिये आभार।
ReplyDeleteजीवन के संघर्ष का सुंदर चित्रण।
ReplyDeleteबीज को केंद्र में रख कर रची सुन्दर रचना ..........
ReplyDeleteअच्छे भावः है
अछी रचना है।बधाई।
ReplyDeleteSUSHEEL JEE,BEHTREEN KAVITA KE
ReplyDeleteLIYE AAPKO BADHAAEE.
संघर्ष के बीजोँ
ReplyDeleteको शब्दोँ मेँ ढालने
की बधाई
बेहद सधी हुई अभिव्यक्ति,
ReplyDeleteसंघर्ष में हर्ष और
आशा की अक्षय जोत जगाती.
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डॉ.चन्द्रकुमार जैन
आपकी कुछ कवितायेँ पढीं और आपकी लेखनी का कायल हो गया. कभी तसल्ली से बैठकर आपकी सारी रचनाएं पढने का मन है. मेरी बधाई और शुबकामनाएं स्वीकार करें.
ReplyDeleteबेहतर अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteजीवन संघर्ष का अनूठा चित्र। बधाई।
ReplyDeletebahut sunder bhavavuyakti hai
ReplyDeleteBeej ko pratik ke roop me rakhkar kavi ne kaphi gehri baat kahi hai.
ReplyDeleteSushil ji un chuninda yuva kaviyon me hain jinki kavitaon me zameen se jude hone ka ehsaas aur samay ki nabj dono ko mahsoos kiya ja sakta hai.
संध्या गुप्ता जी की टिप्पणी से मुझे और बल मिला
ReplyDeleteSusheel ji,
ReplyDeletebahut gambheer bat kahee hai apne is kavita men.khas taur se in panktiyon ne prabhavit kiya.
जो बच पायेंगे आपदाओं से
उनकी ही कठोर त्वचा
सहलायेगी ऋतु और
वे सुगबुगाने लगेंगे अखुँआने को,
दरकाने लगेंगे मिट्टी की परत धीरे-धीरे
और कनखे फेंककर धरती पर
नई पौध में बदल जायंगे।
shubhkamnayen.
HemantKumar
बीज वो नन्हे छौने हैं
ReplyDeleteवो नन्हे चूजे हैं
जिन्हें आना है सृष्टि से बचकर
सृष्टि के सामने
जो बचते हैं
सामने आते हैं
वही उद्देश्य में अपने
सफलता पाते हैं
इनकी इस प्रक्रिया को
पकड़ना इतना आसान नहीं
जितनी सहजता से
कवि सुशील ने पकड़ा है
अपने भावों में जकड़ा है
भाव बोध इनका तगड़ा है।
सभी ने इतनी बधाई और चुनिन्दा शब्दों का प्रयोग कर दिया कि अब और कुछ कहने को बचा ही नहीं,
ReplyDeleteकुल मिलाकर मेरी भी बधाई स्वीकार कर लीजिये.
आभार.
चन्द्र मोहन गुप्त
I loved The Poem.
ReplyDeleteYou are a great poet of urban area.
बिलकुल सही कहा ,यह जीवन भूईंफोर पर ही फबता है !
ReplyDeleteBahut sundar.
ReplyDeleteBhadaayee ho.
~Jayant Chaudhary
बेहतरीन कविता।
ReplyDeleteसुशील जी बेहतरीन कविता रूपी फसल बोई है आपने सच दिल जीत लिया आपकी इस कविता ने तो
ReplyDeleteवाकई बेहद खूबसूरत
कुछ तो बह जायेंगे
तेज पानी में
बतास* में,
कुछ सूर्य की तपिश में
जल जायेंगे,
कुछ को चिड़िये-टिड्डे चुग लेंगे
तो कीट-पतंगे कुछ को
घुन लेंगे।
ये लाईने तो सच पर आधारित और बेहतरीन भाव बधाई
जी आपकी ये कविता धरती बीज और किसान के साथ मौसम को गुनती-बुनती है...अच्छी भावाव्य्क्ति है,साफ शब्दों और बानगी की अदायगी भी सुंदर है ....बधाई
ReplyDeleteकुछ तो बह जायेंगे
ReplyDeleteतेज पानी में
बतास* में,
कुछ सूर्य की तपिश में
जल जायेंगे,
कुछ को चिड़िये-टिड्डे चुग लेंगे
तो कीट-पतंगे कुछ को
घुन लेंगे।
ये पंक्तियाँ तो बहुत ही खूबसूरत लगी वैसे तो पूरी ही रचना बहुत अच्छी है बहुत-बहुत बधाई...
बहुत अच्छी कविता ,बधाई और आभार.।
ReplyDeleteबहुत अच्छी कविता ,बधाई और आभार.।
ReplyDeleteNice thoughts..
ReplyDeleteश्री आशीष खण्डेलवाल जी पहली बार मेरे साईट पर आये हैं। मैं अक्षर जब शब्द बनते हैं की ओर से उनका स्वागत करता हूँ। उनके ब्लॉग टिप्स का मैंने सहयोग भी लिया है अपने ब्लॉग -निर्माण में। आभार सहित।
ReplyDeleteबीज की कथा और किसान की व्यथा का या यो कहिए किसान की कथा और बीज की व्यथा का बहुत ही मार्मिक चित्रण किया है
ReplyDeleteबधाई.
शोभना चौरे
आप लगातार अच्छा लिख रहे हैं।और अब तो गंभीर पाठक भी आपके ब्लॉग पर आ रहे हैं। आपको बहुत - बहुत बधाई उत्कृष्ट लेखन के लिये।
ReplyDeleteumda kavita hai.
ReplyDeleteyakeenan behad gambhir aur bhaavpurn abhivyakti hai.
ReplyDeletesundar srijan ki badhaai.
Renu Ahuja
bahut der se aa paya bandhu
ReplyDeleteidhar kafi pareshan raha.
kavita par sabkuch kaha ja chuka hai.
blog aur khoobsoorat ho gaya hai.
badhai...