साभार : गूगल |
ओ झर... ना !
कल-कल तेरे जल में .
खूब नहाऊँगी
नदी माँ ....ऽ...ऽ... तू
रेत के घूँघट में
मुँह ढाँप मत रोना
तेरी भी बेटी हूँ
तू बह माँ !
तू बह ना !!...
जल से तेरे
आचमन करूँगी ।
लाल, पीले, बैगनी
अपनी आँचल में फूल
खिला माँ !
खिला ना ..ऽ..ऽ..
खोपा में खोसूँगी,
करधनी बनाऊँगी,
माँग सजाऊँगी,
ओ पतझड़ के
निदर्य बयार ....!
वन-उपवन के पत्ते
सब मत गिरा,
हरित-वर्ण से
घर-ओसारे में
भित्ति-चित्र बनाऊँगी।
ओ बसंत, लौट आ..ऽ..ऽ..
लौट आ ना...!
माँदल की थाप पर
पहाड़नों के दल बना
खूब नाचूँगी, ठुमकूँगी,
परब मनाऊँगी।
वनवासी ...
ओ वनवासी ...
बेल, बूटे
शीशम, महुआ
केंदु-पत्ते
बुरी नजर से बचा..ऽ..ऽ..,
वही अपनी थाती है !
हे पहाड़ जोगते वनदेवता !
बापू की तरह
बूढ़ा पहाड़
बहुत बीमार है
बड़े-बड़े घाव हैं,
बड़े-बड़े खोह हैं,
उसकी देह में।
उसे ढाढ़स देना,
मेघ देना, पानी देना,
खेत में अन्न उगाना,
जंगल बचाना
वनदेवता जंगल बचाना
दिक्कुओं के पाप
मत सहना
हे वनदेवी
पुकार मेरी सुनना!
महाजन से मेरी
देह बचाना
नदी-माँ की लाज बचाना !
पहाड़ की बेटी हूँ,
मेरी आर्त्त-विनती
सुन माँ !
ओ ... सुन ना..ऽ..ऽ..
आप पहाड़ी जन - जीवन का चित्रण करने में माहिर हैं सुशील भाई,गजब का लिखा है ! एक टोकरी बधाई देता हूँ।
जवाब देंहटाएंnadee -pahaaD aur prakRuti ki khoobsoorat jhaanki hai
जवाब देंहटाएंप्रकृति और जीवन के सामंजस्य का उम्दा चित्रण...
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें.
पहाडी जन जीवन का प्रकृति के साथ तालमेल का अति सुदर चित्रण किया करते हैं आप... बहुत बढिया लिखा है ... बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत,बहुत सुन्दर!
जवाब देंहटाएंजल की कमी होती जा रही है.
जवाब देंहटाएंजिसने प्रकृति के साथ कुछ समय बिताया हो उसे इस प्रकृति के अद्भुत रूप को अनुभव करने के बाद यह कविता और सुन्दर लगेगी .
सजीव चित्रण के लिये बधाई
सघन संवेदना समन्वित कविता। भाषा आपकी अपनी है।
जवाब देंहटाएं* महेंद्रभटनागर
रचना मात्र नहीं, माटी की
जवाब देंहटाएंगंध है यां....जो बची रही
तो सब कुछ बच सकता है.
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डॉ.चन्द्रकुमार जैन
मैं वयोवृद्ध कवि महेन्द्र भटनागर जी का आभारी हूँ कि उन्होंने यहाँ भ्रमणकर मेरी कविता पढ़ी।- सुशील कुमार।
जवाब देंहटाएंयह पूरे पहाड़ की व्यथा और दर्द समेटे पंक्तियाँ मात्र कविता नहीं-अनेको उन आंदोलनों की तरह एक संपूर्ण आंओलन है जो टिहरी में बहुगुणा जी आदि चला रहे हैं और हर पहाड़ प्रेमी एवं वासी की कराह सुनाई दे रही है.
जवाब देंहटाएंअद्भुत अभिव्यक्ति!! बहुत बधाई. ऐसी रचना बिना अहसासे नहीं लिखी जा सकती.
मैं श्री समीर लाल ‘समीर’ (उड़नतश्तरी ब्लॉग के स्वामी) की टिप्पणी से अत्यंत प्रभावित हुआ। मैं उन जैसे गंभीर पाठकों का आभारी हूँ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर सी पहाडों जैसी भोली कविता
जवाब देंहटाएंलिख डाली आपने मन मोहक कविता
बहूत खूब ........
खूबसूरत…
जवाब देंहटाएंबने रहें। शुभकामनाओं सहित
PRAKRITI PAR EK AUR SASHAKT KAVITA.
जवाब देंहटाएंBADHAAEE HO SUSHIL JEE.
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जवाब देंहटाएंश्री योगेन्द्र कृष्णा जी का पहली बार हमारे साईट पर पदार्पण हुआ है। मैं इनका गर्मजोशी से “अक्षर जब शब्द बनते हैं” की ओर से स्वागत करता हूँ।- सुशील कुमार।
जवाब देंहटाएंpahadon ka hone ke karan bata sakta hoon ki apne kavita ke madhyam se sajeev chitran kiya hai...
जवाब देंहटाएं...badhai !!
bahut hi behtreen likha hai ....bahut bahut badhhayi
जवाब देंहटाएंजीव को सजीव करती
जवाब देंहटाएंग्राम्य जीवन में रंग भरती
कविता अहसासों की है
भरती की नहीं
सुशील की कोई कविता ऐसी नहीं
जिसमें धरती और सुगंध बसती नहीं
।
श्री अनिल कांत जी का पहली बार हमारे साईट पर आगमन हुआ है। मैं इनका गर्मजोशी से “अक्षर जब शब्द बनते हैं” की ओर से स्वागत करता हूँ।- सुशील कुमार।
जवाब देंहटाएंटिप्पणी मेरी न भाई हो भाई को
जवाब देंहटाएंतो ठंडजोशी से ही कर लो स्वागत
वैसे भी यहां गर्मी बहुत है
पर कर तो लो
यह मत कहना कि
आप तो आते आते रहते हैं
।
आप मेरे ब्लाग-गुरु हैं अविनाश भाई । आप को भला कैसे नकार सकता हूं|
जवाब देंहटाएंnice poem bhaiya.
जवाब देंहटाएंRishi
पहाड़ी जन - जीवन का सुन्दर चित्रण
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर भावपूर्ण रचना!
जवाब देंहटाएंआप का ब्लाग बहुत अच्छा लगा।
मैं अपने तीनों ब्लाग पर हर रविवार को
ग़ज़ल,गीत डालता हूँ,जरूर देखें।मुझे पूरा यकीन
है कि आप को ये पसंद आयेंगे।
एक टीस को अनुभव किया आपकी इस रचना में एक बेचैनी सी का अहसास हुआ, बहुत पसंद आई आपकी रचना बहुत-बहुत बधाई...
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जवाब देंहटाएंबढिया शब्द चित्रण किया है। बहुत सुन्दर रचना है।बधाई।
जवाब देंहटाएंप्रकृति का अद्भुत वर्णन, साथ ही अनेकानेक सन्देश समेटे आपकी अद्भुत रचना का मैं तहे दिल से स्वागत करता है.
जवाब देंहटाएंयह एक प्रकार का कवियों का प्रकृति संरक्षण हेतु आन्दोलन अर्थ मदांध लोगों के विरुद्ध है.
इस तरह के काव्यमय आन्दोलनों का पुरजोर समर्थन होना ही चाहिए.
बधाई.
चन्द्र मोहन गुप्त
wah sushil bhai badhiya kavita hai.
जवाब देंहटाएंवाह वाह क्या बात है! बहुत ही उन्दा लिखा है आपने !
जवाब देंहटाएंshabd nahi hain.... kafi sunder beb banaya hai aapne...bahut-bahut badhayi..
जवाब देंहटाएंaapki kavitaaon ka kya kahna? jo bhi kaha jay taarif me vo kam hai..
गज़ब.
जवाब देंहटाएंअब पृश्ठभूमी में कोई पहाडी राग में गाना हो जाये तो मज़ा आ जाय.
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जवाब देंहटाएंBilkul taaza hawa ke jhonke si lagi aapki yah rachna.Mantramugdh sa kar diya.
जवाब देंहटाएंक्या इस चिन्ता का संचार कविता के बाहर कहीं नज़र आता है? उन अंधे-बहरे अपराधियों को कोई चिन्ता नहीं व्यापती जो प्रकृति को विकृत कर रहे हैं....
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना, व्याकुल अभिव्यक्ति...
kitna bada likhta hai be..........
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