साभार : गूगल |
न किसी खंजर के वार से
मैं सबसे ज्यादा
तुम्हारे शब्दों से आहत हूँ
जिसे देते हुए तुमने
मेरी पीठ थपथपायी थी ।
ये शब्द बताशे की तरह मीठे थे
पर एकदम जहरीले थे
हलक में उतरते ही इसने
मेरे सब संवेदी शब्द मार गिराये
और मेरी भाषा नाकाम हो गयी।
बुद्धि भी मेरी मात खा गयी।
इन शब्दों से अब तक
न तो कोई कविता बन सकी,
न कोई गीत
न लोरी, न प्रार्थनाएं ही
चैन और चमन को लूटा है सिर्फ़ इन शब्दों ने ।
मैं अब समझ सकता हूँ
तुम्हारे शब्दों की बानगी
इनके अंखुवे वहीं फूटते हैं
जिस ज़मीन से अपराध के कनखे निकलते हैं
क्योंकि तुम्हारी भाषा की नंगी पीठ
जिन हाथों ने सहलाये हैं
उन्हीं हाथों ने उडा़ये हैं शब्दों के जिन्न
सुरखाब के पर लगाकर
सब ओर दिगंतों तक।
इसलिए हर बुर्ज़, हर इलाके में
गुप्त हो रहे हैं तुम्हारे शब्द अब।
क्यों न इन शब्दों की एक गठरी बनाकर
तुम्हारे चौखट के नीचे जमींदोज कर दूं?
और लौट आऊं नि:शब्द अपने घर।
फ़िर असंख्य मौन दग्ध होठों को जगाकर
तुम्हारे शब्दों के खिलाफ़
एक जंग का एलान कर दूं !
*****************************
सुन्दर और सारगर्भित।
ReplyDeleteबधाई।
अच्छी रचना बन पड़ी शब्द-भाव संयोग।
ReplyDeleteशब्दों से ही कष्ट है शब्द भगाये रोग।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
दमदार अभि्व्यक्ति। कविता में आवेग है।
ReplyDeleteyah kavita nahi ek jang ka elaan hai kavitaa k madhayam se.Ati sundar.
ReplyDeleteSUSHEEL JI BAHOT HI SAMVEDANSHIL RACHANAA HAI,BHAV BHI UTNE HI AALAA DARJE KA DAALA HAI AAPNE KHAS KAR YE PRAYOG KE SHABD THE BATAASHE WAALE .. YE PANKTI BAHOT KHUB BHAAYEE... UMDAAA RACHANAA KE LIYE DHERO BADHAAYEE AAPKO..
ReplyDeleteARSH
और लौट आऊं नि:शब्द अपने घर।
ReplyDeleteफ़िर असंख्य मौन दग्ध होठों को जगाकर
adbhut abhivyakti
sunil ji main aap ka bahut bahut shukraguzar hun ke mujhe aap apni post padhne ke lie invite karte hain.aapki kavitayen sach me bahut badhiya hoti hai. gar kabhi waqt mile to mere blog par bhi aayen.
ReplyDeleteसुन्दर कवितायेँ अच्छे लेखन की बधाई !
ReplyDeleteन तीर से न तलवार
ReplyDeleteबंदा ढेर हो गया
आपकी कविता के अंदाज से
बहुत ही बेहतरीन कविता लिखी है आपने सुशील जी सीधे दिल में उतर गई
सही कहा सुशील जी................शब्द का बाण...........असली के बाण से ज्यादा तेज, ज्यादा चुभन रखता है.............बहतरीन रचना
ReplyDeleteन तीर से न तलवार से
ReplyDeleteबंदा ढेर हो गया
आपकी कविता के अंदाज से
बहुत ही बेहतरीन कविता लिखी है आपने सुशील जी सीधे दिल में उतर गई
SUSHIL KUMAR JEE KE KAVYA KEE ANYA
ReplyDeleteVISHESHTAAON KE ATIRIKT EK YE BHEE
VISHETAA HAI KI SHABDON KAA NAPAA-
TULAA ROOP.UNKEE HAR KAVITA SUNDAR-
SUNDAR MOTIYON SE PIROYEE HUEE
MAALAA KEE TARAH HOTEE HAI.EK AUR
ACHCHHEE KAVITA KE LIYE UNHE MEREE
HAARDIK BADHAAEE.
bahut achchha
ReplyDeleteन अपनों की दुतकार से
ReplyDeleteन किसी खंजर के वार से
मैं सबसे ज्यादा
तुम्हारे शब्दों से आहत हूँ
जिसे देते हुए तुमने
मेरी पीठ थपथपायी थी ।
प्राण शर्मा जी का आभारी हूँ, साथ ही अन्य सभी पाठकों का भी।
ReplyDeleteयही तो शब्द शिल्पी की खासीय्त है कि मौन मे भी शब्द घडता है बेशक कोई उसके शब्द छ्हीन ले मगर उस्की भावनायेण इतनी सशक्त होती हैं कि वो खुद नये शब्द तलाश लेती हैं और इसी का नाम जीवन है शुभकामनाये आप असे ही भाव्मय लिख्ते रहें
ReplyDeleteआपकी रचनायें हमेशा ही बहुत अच्छी होती हैं यह रचना भी बहुत पंसद आई बहुत -बहुत बधाई ये पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगीं-
ReplyDeleteन अपनों की दुतकार से
न किसी खंजर के वार से
मैं सबसे ज्यादा
तुम्हारे शब्दों से आहत हूँ
जिसे देते हुए तुमने
मेरी पीठ थपथपायी थी ।
क्यों न इन शब्दों की एक गठरी बनाकर
तुम्हारे चौखट के नीचे जमींदोज कर दूं?
और लौट आऊं नि:शब्द अपने घर।
फ़िर असंख्य मौन दग्ध होठों को जगाकर
तुम्हारे शब्दों के खिलाफ़
एक जंग का एलान कर दूं !
susheel ji , isme koi do mat nahi hai ki aap ek behatreen kavi hai aur aapki ye kavita bhi ek bahut sundar rachna hai .. shabd hi zindagi hote hai aur shabd hi maran ..
ReplyDeletebadhai sweekar karen..
vijay
www.poemsofvijay.blogspot.com
शब्द का बाण असली बाण से ज्यादा तेज, ज्यादा चुभन रखता है.............
ReplyDeleteइसी पर मेरी चार पंक्तियाँ भी गौर फरमायें............
लगी कब मार की पीड़ा
बात की धार से गहरी
गुंजित गगन में क्यों न हो
विद्रोह भरी स्वर लहरी.
चन्द्र मोहन गुप्ता
www.cmgupta.blogspot.com
Nisandeh ek sunder aur sargarbhit kavita hai. Badhayee !
ReplyDeleteक्यों न इन शब्दों की एक गठरी बनाकर
ReplyDeleteतुम्हारे चौखट के नीचे जमींदोज कर दूं?
और लौट आऊं नि:शब्द अपने घर।
फ़िर असंख्य मौन दग्ध होठों को जगाकर
तुम्हारे शब्दों के खिलाफ़
एक जंग का एलान कर दूं !
क्या खूब विचार है. मुझे याद आय वह गाना जिसमें रफ़ी साहब नें दिल की आग उगलते हुए गाया था-
मेरे दुश्मन तू मेरी दोस्ती को तरसे....
sushil bhai
ReplyDeleteek varg vibhajit samaj me shabd bhi kai khancho me bant aate hain. path ki bhi ek rajniti hoti hai. kai baar to pata bhi nahi chalta ki kaise ek jhooth sahajbodh me shamil hota chala jata hai.
isiliye zaroori hai shabdon ko hathiyaar ki tarah istemal karne ki mushkil kala seekhna.
sushil bhai
ReplyDeleteek varg vibhajit samaj me shabd bhi kai khancho me bant aate hain. path ki bhi ek rajniti hoti hai. kai baar to pata bhi nahi chalta ki kaise ek jhooth sahajbodh me shamil hota chala jata hai.
isiliye zaroori hai shabdon ko hathiyaar ki tarah istemal karne ki mushkil kala seekhna.
bahut hi sateek rachna .
ReplyDeletevaise bhi log krele ko shakkar ki chashni me dubokar prosne me mahir ho gye hai
मैं अब समझ सकता हूँ
ReplyDeleteतुम्हारे शब्दों की बानगी
इनके अंखुवे वहीं फूटते हैं
जिस ज़मीन से अपराध के कनखे निकलते हैं
क्योंकि तुम्हारी भाषा की नंगी पीठ
जिन हाथों ने सहलाये हैं
उन्हीं हाथों ने उडा़ये हैं शब्दों के जिन्न
सुरखाब के पर लगाकर
सब ओर दिगंतों तक।
Durg ko bedha hai aapne sushil ji.Bahut achcha laga.
ati sunder!!
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