रविवार, 26 जुलाई 2009

पहाड़ी लड़कियाँ

साभार : गूगल 
पहाड़ी मिट्टी से बनी
सुरमई-कत्थई
पहाड़ी यौवना के माथ से
ढुलकतीं हैं
टप-टप पसीने की बूँदें
होंठ तक..फिर उसकी देह तक
जब पत्थर तोड़ती वह अपने दुख के
गुनगुना रही होती है
पहाड़ पर कोई पहाड़ी गीत।

छोटानागपुर के नंगे पठार से
राजमहल की ठूँठ पहाड़ियों तक,
कारुडीह के झाड़-झाँखड़ से
सारंडा के उजड़ते जंगलों तक
दीख ही जाती हैं कहीं भी
सखियों-संग विहँसती हुई
खिली हुई जंगली फूलों की तरह
पहाड़ की वह चपला प्रकृति-नारी !

अपनी उपस्थिति-गंध से
आस-पास की हवा महमहाती
मन का बासीपन हरती
हरे-हरे परिधान से सजी
कभी पगडंडियों पर कुलेलती तो
कभी काम करती और गाती,
गाती और काम करती।

घायल पत्थरों के बीच से फूटती
कल-कल झरना-सी
समवेत स्वर-लहरियाँ उसकी
सुनी जा सकती हैं
पूरे झारखंड में बंधना-माघे परब में
बाँसूरी की लय पर
माँदल की थाप पर
लड़कों के दल को अर्धचंद्राकार घेरे
आपस में बाँहों में बाँहे डाले
पंक्तियों में थिरकतीं जब वे
कहीं भी,कभी भी
पहाड़ पर पठार पर घाटियों में
धनकटनी से लेकर
महुआ के फूलने के मौसम तक।

पर जब समूचा जंगल पत्रविहीन हो जाता है
और तवने लगती है पहाड़ की कृशकाया
जेठ की चिलकाती धूप में,
केन्दुपत्ते-महुआ-बरबट्टी-धान सब
ओराने लगते हैं पहाड़ से जब,
पहाड़ पर भूख का जलजला आ जाता है और
भूखे-नंगे पहाड़ के लोग मरने लगते हैं,
भर-भर गाड़ी पहाड़ी कन्याएँ तब
कूच करने लगती हैं नीचे तराई में
काम की खोज़ में
और उसके गीत पहाड़ के दु:ख
से भीगने लगते हैं,
उसके सपने
पेट की आग से जलने लगते हैं।

गहरी अंधेरी खदानों में खनिकों संग
तो कभी ईंट-भट्ठों पर ईँट पाथती हुईं,
बन रही पक्की सड़कों पर भी
बेलदारिन का काम करतीं
कभी अजय-बाँसलोय-स्वर्णरेखा-मयूराक्षी*
के निर्जल मरु में
सिर पर उमस में
भर-भर कठौतियाँ रेत ढ़ोतीं
तो कभी बंगाल के खेतों में दौनी-निकौनी,
बुवाई-कटाई करती हुईं
अपने श्रम-गीतों से बियावानों को जगातीं
अपनी छोटी-सी दुनिया में
फिर भी मगन रहती हैं पहाड़ी बालाएँ।

मैं पूछता हूँ स्वयं से कि,
पहाड़ पर जीवन बचे हैं जहाँ
थोड़े-बहुत जिन
पहाड़ी स्त्रियों की मेहनत-मजूरी से
उनकी पठार-सी काया को भी
कुचल रहे हैं जब-तब
बिचौलिये-महाजन-दिक्कु सब,
वहाँ कब तक यूँ ही अलापती रहेंगी
भग्न होती ये हृदयकंठ-वीणाएँ ?

फिर सोचकर यह व्यथित हो जाता हूँ कि
पहाड़ का अवसान निकट है,
पहाड़ दिन-दिन बिलाते जा रहे हैं जैसे
जंगल जैसे नित सिमटते जा रहे हैं
जैसे सूखती जा रही हैं पहाड़ी नदियाँ
कम पड़ते जा रहे हैं लोगों की ज़मीन
बैल-बकड़ी,कुत्ते,सूअर,गायें
वैसे ही पहाड़ी लड़कियाँ भी
दिन-दिन घटती जा रही हैं,-
गायब होती जा रही हैं वे पहाड़ से और
उनके गीतों के स्वर हर दिन
मद्धिम पड़ते जा रहे हैं
बुझते दीये की थरथराती लौ की तरह।
(अजय-बाँसलोय-स्वर्णरेखा-मयूराक्षी*= झारखंड की नदियों के नाम)

16 टिप्‍पणियां:

  1. एक सुन्दर शब्द-चित्र बनाया है आपने जो हकीकत के काफी करीब है।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

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  2. अद्भुत । मुग्ध हुआ ।
    झारखंड की नदियों के नाम बड़े खूबसूरत हैं । आभार ।

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  3. कविता में कल्‍पना से
    इतर सच का समावेश
    पाठक को मंथन के
    लिए करता है विवश।

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  4. पहाडी लडकियो का सुन्दर आरेख खीचा है आपने
    बहुत सुन्दर

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  5. बेहतरीन..बहुत सुन्दर और अद्भुत रचना!

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  6. बहुत सुंदर चित्रण किया है आपने..

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  7. पहाड़ी लड़कियों के जीवन के बहाने पहाड़ के दु:ख-दैन्य का जीवंत चित्र खिंचा है आपने।

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  8. बिल्‍कुल सजीव चित्र खींच देते हें आप .. अपनी रचनाओं के माध्‍यम से .. मेहनतकश आदिवासी जीवन का भी .. और प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन के फलस्‍वरूप उनके समक्ष उपस्थित सूस्‍याओं का भी .. बहुत सुंदर रचना !!

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  9. Pahadi janjeevan ke pratinidhi kavi ke roop me aap ek sashakt pahchan bana rahe hain.Shubkamnayen.

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  10. भाई साहिब चित्र खींच कर रख दिया आँखों के सामने ,रचना आँखों से होती हुई दिल में समां गई

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  11. sabdon ko bahut achchi tarah se sajaya hai.kaphi Achcha likhte hai. thanks.

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  12. सुशील जी,

    सच कहा है, पहाड़ी लड़कियाँ और उनकी जीवन वृत्त को पूरी तरह उतारती हुई कविता मन मोह लेती है और उनके गुम होने पर अपनी चिंता में शामिल भी कर लेती हैं।

    पत्रिक-गुंजन

    आपका स्वागत है एक साहित्यिक पहल से जुड़ने का

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  13. प्रिय,सूशीलजी आप की कविता नारी की जिस सम्वेदनामई मूर्ति को आकर देती है उसमे नारी की गरिमा भीusake कार्यरत होने में छुपी है.सहज संवेदना की इस कविता के लिए बधाई

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  14. प्रिय सुशील जी!

    आपकी कविताएँ प्रायः पढ़ता हूँ। लेकिन ’पहाड़ी लड़कियाँ’ मेरी प्रिय कविता है। उसे बार-बार पढ़ता हूँ। कविता जब पाठक की हो जाए तो वह कविता सफ़ल होती है। आप एक बेहद अच्छे कवि हैं।
    सादर
    अनिल जनविजय

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  15. जय जिनेन्द्र. पहडी लड़कियों के बारे में आपने जो लिखा है वो वाकई काबिले तारीफ है . बहुत ही अच्छा है ,में भी एक कलमकार बनना चाहता हु आपकी क्या राय है मेरे बारे में , में आगे काल्पनिक कहानिया लिखना चाहता हु प्लीज़ आपकी राय दे धन्यवाद . राहुल जैन

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  16. यहां शब्दों की सक्रियता देखते ही बन रही है....

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