बाज़ार आदमी की
रोजमर्रा की जरूरतों से पैदा हुआ
और कविता मन के
एकांत में उठती
लहरों की उथल-पुथल से
फिर दोनो में जंग छिड़ गई
कविता की जगह खारिज करता हुआ
बाज़ार नित्य घुसता रहा
आदमी की चेतना में हौले-हौले
संचार के नूतन
तरीकों-तकनीकों को अपनाकर
भाषा की नई ताबिश में
ज्यादातर चुप रहकर
वह
ऐसी लिपि... ऐसी भाषा
के इज़ाद के जुटान में रहा
जो आदमी को फाँसकर उसे
केवल
एक ग्राहक-आदमी बना दे, तभी तो
उसके चौबारों घरों...
यहाँ तक कि बिस्तरों पर भी
टी. वी. स्क्रीनों के मार्फ़त
विज्ञापन की नई-नई चुहुलबाजियों के जरिये
रोज़ काबिज हो रहा
बहुत चालाकी से उसने
कविता के लिये
कवि-भेसधारी हिजड़ों की
फ़ौजें भी तैयार कर ली
जो बाज़ार की बोली बोल रहीं
विज्ञापन के रोज़ नये छंद रच रहीं
मंचों पर गोष्ठियों में
अपनी वाहवाही लूट रहीं और लोगों की
तालियाँ बटोर रहीं
पर बाज़ार को क्या मालूम कि
कविता अनगिनत उन
आदिमजातों की नसों में
लहु बन कर
दौड़ रही हैं
जो बाज़ार के खौफ़नाक़ इरादों से सावधान होकर
अधजले शब्दों की ढेर से
अनाहत शब्द चुन रहे हैं
और भाषा की रात के खिलाफ़
हृदय के पन्नों पर
नई कवितायें बुन रहे हैं
बस, पौ फटने की देर है
कि आदमी बाज़ार की साजिशों के विरुद्ध
कबीर की तरह लकुटी लिये जगह-जगह
इसी बाज़ार में खड़े मिलेंगे आपको
जिनके पीछे कवियों का कारवाँ होगा ।
• अनेक कवि विश्व बाज़ार से आक्रांत हैं और महानगरीय विद्रूपताओं वाली कैविताओं की भरमार है।
ReplyDeleteलाजवाब !
ReplyDeleteबाज़ार आदमी की
ReplyDeleteरोजमर्रा की जरूरतों से पैदा हुआ
और कविता मन के
एकांत में उठती
लहरों की उथल-पुथल से
बाज़ार का कविता के साथ तुलनात्मक अध्यन. अच्छा विषय लिया. धन्यबाद.
सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ लाजवाब कविता!
ReplyDeleteजो बाज़ार के खौफ़नाक़ इरादों से सावधान होकर
ReplyDeleteअधजले शब्दों की ढेर से
अनाहत शब्द चुन रहे हैं
और भाषा की रात के खिलाफ़
हृदय के पन्नों पर
नई कवितायें बुन रहे हैं
कविता को नया आयाम देती सशक्त रचना
बाज़ार किस तरह आदमी के जीवन के हर कोने में सेंध लगा रहा है, यह हम अब समझने लगे हैं। उसने साहित्य और भाषा को भी नहीं बख्शा है। आपकी कविता में इसी चिंता की सटीक तर्जुबानी हुई है और एक कवि मन की ओर से इस बाज़ार को चेतावनी भी !
ReplyDeleteआज बाजारवाद सर्वत्र है. इसकी गिरफ्त में हर शय है ,कविता भी .
ReplyDeleteआपकी कविता में बाज़ारवाद के विरोध में विद्रोह का स्वर खूब उभरा है.
--- प्राण शर्मा