गूगल : साभार |
सुनना केवल तुम
वह आवाज़
जो बज रही है
इस तन-तंबूरे में
स्वाँस के नगाड़े पर
प्रतिपल दिनरात
वहाँ लय भी है,
और ताल भी,..तो
जरुर वहाँ नृत्य भी
होगा और दृश्य भी ।
ओह, कितना शोर है
सबओर,
कितने कनफोड़ स्वर हैं
आवाज़ की इस दुनिया में
और कितनी बेआवाज़
हो रही है यहाँ मेरी
अपनी ही आवाज़ !
कहीं चीखें सुन रहा हूँ,
कहीं क्रंदन।
मशीनों के बीच घुमता हुआ
खुद एक मशीन हो गया हूँ
भीड़ का तमाशाई बन रहा हूँ कहीं
तो कभी तमाशबीन हो गया हूँ !
कम करो कोई बाहर की
इन कर्कश-बेसूरी आवाज़ों को...
अपने घर लौटने दो मुझे
सुनने दो आज
वह अनहद नाद
जन्म से ही मेरे भीतर
जो बज रहा है
मेरे सुने जाने की प्रतीक्षा में।
उसकी लय और ताल पर
मुझे झूमने दो
मुझे थोड़ी देर यूँ ही
स्वाँस-हिंडोला में
झूलने दो।
कम करो कोई बाहर की
ReplyDeleteइन कर्कश-बेसूरी आवाज़ों को...
अपने घर लौटने दो मुझे
सुनने दो आज
वह अनहद नाद
जन्म से ही मेरे भीतर
जो बज रहा है
मेरे सुने जाने की प्रतीक्षा में।
......अद्वितीय भाव ....
behad sunder likhi hai yeh rachna...
ReplyDeletebhav itne sunder ban pade hain ki shabd nhi hai iski prshansa ke liye...
bahut khub sushil bhai..
बहुत अच्छे लगी यह कविता।
ReplyDeleteAAPKEE KAVITA MAN KO BHAA GAYEE HAI .
ReplyDeleteभाई सुशील जी, एक और आपकी उत्तम कविता… कहां सुन पाते हैं अपने भीतर की आवाज़… और यदि सुनना भी चाहें तो सुनने नहीं दी जाती… वह भीतर की हमारी आवाज़ हर पल, हर क्षण हमारे द्वारा सुने जाने की प्रतीक्षा में रहती है…
ReplyDeleteकहीं चीखें सुन रहा हूँ,
ReplyDeleteकहीं क्रंदन।
मशीनों के बीच घुमता हुआ
खुद एक मशीन हो गया हूँ
भीड़ का तमाशाई बन रहा हूँ कहीं
तो कभी तमाशबीन हो गया हूँ !
बहुत उत्कृष्ट कविता, अभिनन्दन.
बेहतरीन रचना....
ReplyDeletesunder rachna...
ReplyDeleteबहुत अच्छे लगी यह कविता।
ReplyDeleteसुनने दो आज
ReplyDeleteवह अनहद नाद
जन्म से ही मेरे भीतर
जो बज रहा है
मेरे सुने जाने की प्रतीक्षा में।
Bemisal Panktiyan...Bahut Sunder