[साभार पेन्टिंग- ब्रिज कुमार "भारत"] |
तुमने मुझे चूमा
और मैं फूल बन गयी
तुमने मुझे चूमा
और मै फल बन गयी
तुमने मुझे चूमा
और मैं वृक्ष बन गयी
फिर मेरी छाँह में बैठ रोम-रोम जुड़ाते रहे
तुमने छूआ मुझे
और मैं नदी बन गयी
तुमने छूआ मुझे
और मैं सागर बन गयी
तुमने छूआ मुझे
और मैं सितार की तरह
बजने लगी
फिर मेरे तट पर
देह-राग की धूप में
निर्वसन हो बरसों नहाते रहे
तुमने देखा मुझे
और कहा -
मैं तुम्हारे आकाश की नीहारिका हूँ
तुमने सुना मुझे
और कहा -
मैं सरोद की सुरीली तान हूँ
तुमने मेरे जल में स्नान किया
और कहा -
मैं तपते जंगल में जल-भरा मेघ हूँ
तुमने सूँघा मुझे
और कहा -
मैं रजनीगंधा का फूल हूँ
फिर मुझे में विलीन हो अपनी सुध-बुध खो बैठे
तुमने जो कहा
जैसे कहा
बनती रही
सहती रही
स्वीकारती रही
और तुम्हारे प्यार में
अपने को खोती रही
पर जरा गौर से देखो मुझे –
समुद्र में उठे ज्वार के बाद
उसके तट पर पसरा हुआ मलवा हूँ
दहेज की आग में जली हुई मिट्टी हूँ
देखो मेरी देह -
वक्त की कितनी खराँचें उछरी हैं
युगों से तुम्हें जन्मती-पालती
तुम्हारी अनैतिक इच्छाओं और हवस से लड़ती हुई
तुम्हारा इतिहास हूँ मैं
अब और कोई नाम न देना मुझे
मैं संज्ञाहीन
सच हूँ तुम्हारी
जिसे ठीक से शायद पढ़ा नहीं तुमने !
पर जरा गौर से देखो मुझे –
ReplyDeleteसमुद्र में उठे ज्वार के बाद
उसके तट पर पसरा हुआ मलवा हूँ
दहेज की आग में जली हुई मिट्टी हूँ
बहुत खूब
तुमने जो कहा
ReplyDeleteजैसे कहा
बनती रही
सहती रही
स्वीकारती रही
बहुत खूब ,बहुत खूब ,बहुत अच्छा|
अद्भुत!!
ReplyDelete.............
ReplyDelete.............
............
अब और कोई नाम न देना मुझे
ReplyDeleteमैं संज्ञाहीन
सच हूँ तुम्हारी
जिसे ठीक से शायद पढ़ा नहीं तुमने !
...बहुत मर्मस्पर्शी और सशक्त अभिव्यक्ति...
bahut Shandar rachana...
ReplyDeleteman-mastisk pe asar chhorti hai...
Dhanyvaad
Shandar rachna,
ReplyDeleteMan-mastisk ko chhoo gayi...
Dhanyvaad.