- अशोक सिंह |
असहमति में उठे हाथ
मंच पर उनमें से कोई नहीं था
जिनके नाम पर बनाया गया था मंच
वे सबके सब भीड़ का हिस्सा थे
मंच के सामने बैठे सुन रहे थे अपने बारे में
जो कुछ बोल रहे थे मंच पर बैठे लोग
कुछ समझ रहे थे
कुछ बिना समझे ही बजा रहे थे तालियाँ
एक-दूसरे की देखा-देखी
कुछ संशय में भी थे
जो सिर्फ़ मंच की तरफ देख रहे थे टकटकी लगाए
सभा चल रही थी
आँकड़े और शब्द हवा में तैर रहे थे
तथ्य का दूर-दूर तक कहीं कोई पता न था
तभी आँकड़े और शब्दों के जाल-फाँस को तोड़ता
असहमति में अपने हाथ उठाता
भीड़ से उठकर मंच की तरफ बढ़ा एक आदमी
वह मंच पर चढ़कर कुछ कहना चाहता था
व्यक्त करना चाहता था अपनी असहमति
सभा में लगभग बनती सहमति के बीच
पर अफसोस,
जैसे ही हाथ उठाता हुआ मंच की तरफ बढ़ा
आयोजकों के कान खड़े हो गए
फिर क्या था
उनमें से एक ने दूसरे को इशारा किया
दूसरे ने तीसरे को
तीसरे ने उसे पकड़कर
वहीं ले जाकर बैठा दिया
जहां से उठकर खड़ा हुआ था वह
असहमति में अपना हाथ उठाए
वह तिलमिलाकर उठा
और ज़ोर-ज़ोर से बोलता
मंच की तरफ बढ़ा
मंच से फिर इशारा हुआ
और इस बार कुछ पुलिसकर्मियों ने
मोर्चा सम्हालते हुए उसे पकड़ा
और भीड़ से उठाकर
सभा के बाहर गेट पर ले जाकर छोड़ दिया
जहां बाहर तैनात कई पुलिसकर्मियों से घिरा वह
चीखता-चिल्लाता रहा
देता रहा ऊपर से नीचे तक सबको गालियाँ
कुछ ने कहा सनकी है
ऐसा ही करता है सब जगह जहाँ जाता है
बकता रहता है उल-जलूल
कुछ ने पागल कहा
तो कुछ ने साबित किया बेकार आबारा
बुद्धिजीवियों की राय थी
पियक्कड़ है पीकर आया है
- और सभा चलती रही..
दूसरे दिन अखबार में खबर छपी
आदिवासियों की हितैषी सरकार ने की घोषणा
आदिवासी हितों पर आधारित कई विकास योजनाओं की
बड़ा सा रंगीन फोटो भी छपा था
जिसमें दिख रहे थे मंच पर बैठे लोग
पर वे लोग कहीं नहीं दिख रहे थे
जिनके नाम पर बनाया गया था मंच
हाँ, उस बड़ी सी खबर के कोने में
छपी थी पुलिस की गिरफ़्त में खिसियाए
एक आदिवासी युवक की तस्वीर भी
जिसके ऊपर हेडिंग लगा था
सभा में पीकर उत्पात मचाने वाले
एक शराबी युवक को
पुलिस ने पकड़कर सभा से बाहर किया |
YTHAARTH KAVYABHIVYAKTI .
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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