बुधवार, 20 मार्च 2013

वे शहनाई के कबीर थे

( पेन्टिंग साभार  : विजेन्द्र एस. विज)


शहनाई-सम्राट बिस्मिल्लाह खान को (जन्म-तिथि 21 मार्च) पर याद करते हुए -


साँस की डोर से
छूटा लोकवाद्य यह
भीषण दु:ख से चीत्कार कर
पुकार रहा
उस फकीर को
अपने पीर को
जिसकी फूँक से
गूँजती थी कभी
बनारस की वादियाँ

सुर की साधना में
सादगी-सौम्यता का वेश धर
फक्क्ड़ की शान से
ताज़िन्दगी गुज़ार दी जिसने

जिसकी नाद-लहरियों में डूब
जन-गण का हृदय
मगन हो
गा उठता था
झूम उठता था

जो लय-सुर में ढूँढता रहा  
परम सत्य को आजीवन
बनारस के गंगातट पर तो कभी 
विश्वनाथ* की शरण में
और कभी भा-रत के मन में
रमता रहा

उस तथागत* को
तलाश रही  
उसकी ही शहनाई आज

बिलख रही
बजरी, चैती, झूला और
ठूमरी की लोक-धूनें
अपने ही राग-रागनियों से
बरसों से छूटी हुई  विह्वल 
बहार, जैजैवंती और भैरवी की तानें
जैसे सात सुरों में
एक सुर कहीं खो गया

"हाय, मेरा सुरसाधक
किन घाटों पर
किन महफिलों में
किन गुफाओं में जा,
सदा के लिये सो गया ! "

जिसकी सदाएँ
सुनेपन के दयार में
सुनने की अंतहीन तरस के साथ
बुला रही
अपने बिस्मिल्लाहउस्ताद को
सादे पतलून-कुरते-टोपी के लिबास वाले
कबीर-शहनाईनवाज़ को
उनमें सोए
सबसे प्यारे राग को
फिर जगाने
शहनाई के नाद-स्वरम् से
फ़जा को फिर महक़ाने ।

विश्वनाथ* = भगवान का एक नाम जिस पर बिस्मिल्लाह खान साहब को अटूट आस्था थी।
तथागत* = भगवान बुद्ध
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8 टिप्‍पणियां:

  1. लिखते सभी है पर आपके शब्दों में जीवन सक्रिय है

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  2. Bharat Ratna Bismillah khan g hamesha Bharat ki Lok sannsakriti ke purodha bane rahenge
    Unki marmik smriti dilane ke liye bahut -bahut dhanyavad sir
    Good night chandan

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  3. वे सचमुच शहनाई के कबीर थे।


    सिंथेसाइज़र के संगीत टेक्नो इस युग में आपने उन्हे याद किया और हमे भी याद दिलाया... बहुत बहुत आभार...

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  4. आपने बिलकुल सही कहा- वह शहनाई के कबीर थे। अपनी इस कविता के माध्यम से आपने बिस्समिल्लाह साहब को जिस ढंग से याद किया है, वह अद्भुत है। एक शब्द 'चित्कार' आया है इसे ठीक कर लें- चीत्कार लिखें। बधाई इस सुन्दर कविता के लिए !

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