गूगल से साभार |
सिर्फ़ शब्द नहीं
मुझे हृदय की मौन भाषा चाहिए
मन की अदृश्य लिपियों में गढ़ी
सुगबुगाते हुए और
अभिव्यक्ति को बेचैन
भावों के अनगिन तार दे दो मुझे
कविता के लिये
मात्र आँखों का कँवल नहीं
उसका जल चाहिए मुझे
उनमें पलते सपनों की आहट
कोई सुनाओ मुझे
सुबह से शाम तक
दो जून रोटी के वास्ते
जिन कायाओं ने रच रखी है
पूरी दुनिया में श्रम का संगीत
उसका नाद चाहिये, ताल चाहिए
मुझे स्वेद से लथ-पथ बेकसों की
बेकली भी चाहिए
कविता के लिये
मेरे शब्द तुम
गगनचुंबी इमारतों में
मजबूर औरतों की कराह सुनो और
गहो कविता में
जो गिरती रात के साथ,
गहरी और घनी होती जा रही है
अनकही बहुत सी कहनी है
इसलिये शब्दों का इन्द्रजाल नहीं
उसकी तह में पैठे मुझे
नए अनुभव-अनुभाव चाहिए
नहीं चाहिए मुझे
दराजों में दीमक चाट रहे अधमरे शब्द
जिनसे मयखाने में बैठ रोज़ लिखी जा रही
जनवाद की बेहद झूठी कविताएँ
कविता में तो मुझे
ज़िन्दा टटका लोक का ठेठ शब्द चाहिए
आहत आत्माओं का
अनाहत स्वर और नव लय चाहिए
बहुत उम्दा अभिव्यक्ति!!
जवाब देंहटाएंकविता में जिंदगी के स्वर और सुर चाहिए !
जवाब देंहटाएंयह कविता एक सच्चे कवि की ईमानदारी, जन से जुड़ने की इच्छा और उसके सामाजिक सरोकारों की ओर संकेत करती है। आज बहुत सी कविताएं इसलिए जनविमुख होती हैं क्योंकि उनमें शब्दों के माध्यम से झूठा आडम्बर रचा जाता है।
जवाब देंहटाएंअनकही बहुत सी कहनी है
जवाब देंहटाएंइसलिये शब्दों का इन्द्रजाल नहीं
उसकी तह में पैठे मुझे
नए अनुभव-अनुभाव चाहिए.......
हृदय को छूने वाली रचना है।
बिल्कुल सही चाहना की है।
जवाब देंहटाएंसशक्त, सुन्दर अभिव्यक्ति!
जवाब देंहटाएंअनकही बहुत सी कहनी है
जवाब देंहटाएंइसलिये शब्दों का इन्द्रजाल नहीं
उसकी तह में पैठे मुझे
नए अनुभव-अनुभाव चाहिए
बहुत सुंदर कविता गूढ़ भाव सार्थक सन्देश.
बहुत अच्छा लिखते हैं आप..
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