[आसाम में उपद्रवियों द्वारा सताये गये झारखंडी भाई-बहनों की व्यथा-कथा सुनकर...]
1॰
अबकी अगहन में ही
लौट आया हरिया
आसाम से अपने गाँव
अपने दो जन गँवाकर
बंधना परब से दो मास पहले
हरिया सोरेन अच्छा बजनियाँ है
मांदर बजाता है
बाँसूरी बजाता है
और परब के गीत खुद बनाता है
खुद गाता भी है
लौट आया हरिया
आसाम से अपने गाँव
अपने दो जन गँवाकर
बंधना परब से दो मास पहले
हरिया सोरेन अच्छा बजनियाँ है
मांदर बजाता है
बाँसूरी बजाता है
और परब के गीत खुद बनाता है
खुद गाता भी है
वह अच्छा चित्रकार भी है
दीवाल पर गेरू रामरस चूना सुरखी टेसू-जामुन से
हाथी ऊँट मोर फूल-पत्तियों के भाँति-भाँति के
सुन्दर-सुन्दर भित्ति-चित्र उकेरता है, गाँव-घर में
उसकी बहुत कदर है पचास का है वह
काका कहकर सभी हँकाते हैं उसे
इस बार मगर हरिया चुप-चुप रहता है
न कहीं आता-जाता है
न गीत ही लिखता है परब के
नीमिया के नीचे दिनभर दालान में
महुआ के मद्य में ओघराया
कभी ज़मीन टकटोरता तोदीवाल पर गेरू रामरस चूना सुरखी टेसू-जामुन से
हाथी ऊँट मोर फूल-पत्तियों के भाँति-भाँति के
सुन्दर-सुन्दर भित्ति-चित्र उकेरता है, गाँव-घर में
उसकी बहुत कदर है पचास का है वह
काका कहकर सभी हँकाते हैं उसे
इस बार मगर हरिया चुप-चुप रहता है
न कहीं आता-जाता है
न गीत ही लिखता है परब के
नीमिया के नीचे दिनभर दालान में
महुआ के मद्य में ओघराया
कभी अकास निहुरता है
एक जगह भोर का बैठा-बैठा
चिलम पर चिलम पीता
साँझ कर देता है
बीच-बीच में उसके होंठ हिल पड़ते हैं -चिलम पर चिलम पीता
साँझ कर देता है
‘काहे ढिठाई की थी चुड़का तुने
हमरे संग चलने की
अपने घरवाली के कहने में आकर..’
‘बेटा बुधन नहीं बचा पाया तेरा यह
कायर बाप तुझे उपद्रवियों के कहर से।’
उसकी ललछौंही आँखों से ढरक आते हैं आँसू
उसके स्याह ओठ तक और पठार सी
उसकी काया थरथराने लगती है
उसकी संतानें सुखमुनी, बिटीया और पत्नी सुगिया भी
उसके साथ सिसकने लगते हैं।
2-
माघ का महीना है, धान पीटे जा रहे हैं खमार में
पहाड़ी बस्तियों में रौनकें लौटने लगी हैंगाँव के मुखिया-माँझी टोलों में
परब के दिन तै कर रहे हैं -
उपर टोला चौदह तारीख सोमवार
मरांग टोला सोलह तारीख बुधवार
कदम टोला बीस को
यानि अलग-अलग टोलों में बंधना-माघी के
अलग-अलग दिन धराये गये
पर हरिया के हृदय में पड़ा मौन टूट नहीं पाया
हराधन बेटाधन छोटका सभी आये समझाने-बुझाने
हरिया को पर हरिया उदास है|
3-
आज हरिया के गाँव में परब है
लड़के दल बनाकर ढोल-मांदरआज हरिया के गाँव में परब है
बाँसूरी-तुरही झांझ बजा रहे हैं
लड़कियाँ हरे-नये परिधान में
फूल-पत्तियों और मिट्टी-कागज के
तरह-तरह के गहनों में सजी-सँवरी
एक-दूसरे की बाँहों में बाँहे डाले
लड़कों के दल को अर्धचन्द्राकारतरह-तरह के गहनों में सजी-सँवरी
एक-दूसरे की बाँहों में बाँहे डाले
पंक्तियों में घेरे थिरक रही हैं
सभी गा रहे हैं फसल के गीत और
बढ़ रहे हैं कदम दर कदमसभी गा रहे हैं फसल के गीत और
हरिया की झोपड़पट्टी की ओर
सबकी आँखें ढूंढ रही हैं हरिया सोरेन को
पर दीख नहीं रहा कहीं हरिया सोरेन|
4-
पहाड़ की तराई में अकेला खड़ा हरिया गा रहा है -
(या कि दाढे़ मारकर रो रहा है)
उसके गीत में पहाड़ का दु:ख है
दहाड़ है चेतावनी है
उसके गीत में पहाड़ का दु:ख है
दहाड़ है चेतावनी है
अपने लोगों के लिये सीख है
वह गा रहा है और कह रहा है -
उठो, जागो मेरे भाई
वनदेवता तुम्हें जगा रहे हैं नींद से
अब और सोने का समय नहीं
उठो, जागो मेरे भाई
वनदेवता तुम्हें जगा रहे हैं नींद से
अब और सोने का समय नहीं
तराई की ज़मीन पर जाओ
उबड़-खाबड़ टीले-टप्पर काटो-छाँटो
उसे चौरस बनाओं
कुँआ खोदो वहाँ हल-बैल लाओ
जोतो-बोओ, हम वीर सीदो-कान्हु की संतान हैं
भूलकर भी अब परदेस कमाना मत भाई
अपनी ज़मीन पर ही मेहनत-मजूरी करना
बाहर लोग हिकारत भरी नज़र से देखते हैं हमेंकुँआ खोदो वहाँ हल-बैल लाओ
जोतो-बोओ, हम वीर सीदो-कान्हु की संतान हैं
भूलकर भी अब परदेस कमाना मत भाई
अपनी ज़मीन पर ही मेहनत-मजूरी करना
आसाम में अब तक हमारे सैकड़ों भाईयों को
मौत के घाट उतार दिया गया,
मुम्बई से भी हमें खदेड़ा गया
हमारी बेटियां हर दिन
दिल्ली के बाज़ार में बेची जाती है
हमारे बीच के लोग इसमें दलाल बनते हैं,
इन दलालों का मुँह काला करो, गाँव निकाला करो
हमें अपने जंगल बचाने हैं पहाड़ बचाने हैं
यहीं... पहाड़ की तराई में हम अपनी
यहीं... पहाड़ की तराई में हम अपनी
छोटी सी दुनिया बसायेंगे
अब हम बाहर नहीं जायेंगे
उठो, जागो मेरे भाई
पहाड़ के देवता तुम्हें जगा रहे हैं।अब हम बाहर नहीं जायेंगे
उठो, जागो मेरे भाई
आपकी इन कविताओं में अपने अंचल का दर्द सिमटा हुआ है। ये ज़मीन से जुड़ी कविताएं हैं और अपने अंचल की सोंधी महक भी लिए हुए हैं।
जवाब देंहटाएंसच! अति सक्रिय शब्द..
जवाब देंहटाएंसच को स्वीकार करना सबसे आवश्यक है. अत्यंत संवेदनशील रचना.
जवाब देंहटाएंBahut sudar dil bhari ho gaya kavita padh kar
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