धीरे - धीरे
दरक जाएंगी सम्बन्धों की दीवारें
प्यार रिश्ते और फूल बिखर जाएँगे
न धरती बचेगी न धात्री
कोशिका की देह में टूटने की आवाज
सुनो जरा गौर से
हताशा में नहीं लिखी गई यह कविता
मृत्यु में जीवन का बीज सुबक रहा अंखुआने को
अंतर्नाद में प्रलय-वीणा झंकृत हो रही
फिर से सृजन का भास्वर लेकर
धीरे - धीरे
सब कुछ बिहर जाएगा मेरे भाई
फिर भी बचे रहेंगे देह - गंध, स्वाद और जीवन - संगीत का आखिरी लय
तुम्हारे शेष रहने तक |
दरक जाएंगी सम्बन्धों की दीवारें
प्यार रिश्ते और फूल बिखर जाएँगे
न धरती बचेगी न धात्री
कोशिका की देह में टूटने की आवाज
सुनो जरा गौर से
हताशा में नहीं लिखी गई यह कविता
मृत्यु में जीवन का बीज सुबक रहा अंखुआने को
अंतर्नाद में प्रलय-वीणा झंकृत हो रही
फिर से सृजन का भास्वर लेकर
धीरे - धीरे
सब कुछ बिहर जाएगा मेरे भाई
फिर भी बचे रहेंगे देह - गंध, स्वाद और जीवन - संगीत का आखिरी लय
तुम्हारे शेष रहने तक |
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंसाझा करने के लिए धन्यवाद।
धीरे - धीरे
सब कुछ बिहर जाएगा मेरे भाई
फिर भी बचे रहेंगे देह - गंध, स्वाद और जीवन - संगीत का आखिरी लय
तुम्हारी शेष रहने तक
तुम्हारी ... शेष रहने तक , क्या ?
शायद स्मृति !
:)
सुंदर संश्लिष्ट रचना के लिए साधुवाद
आदरणीय सुशील कुमार जी !
❣मंगलकामनाओं सहित...❣
-राजेन्द्र स्वर्णकार
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि का लिंक आज सोमवार (26-08-2013) को सुनो गुज़ारिश बाँकेबिहारी :चर्चामंच 1349में "मयंक का कोना" पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
bahut hi gahre bhaw hai .......ati sundar ....
जवाब देंहटाएंनि:संदेह एक अच्छी कविता !
जवाब देंहटाएंधीरे - धीरे
जवाब देंहटाएंसब कुछ बिहर जाएगा मेरे भाई
फिर भी बचे रहेंगे देह - गंध, स्वाद और जीवन - संगीत का आखिरी लय
तुम्हारी शेष रहने तक
तुम्हारी ... शेष रहने तक , क्या ?
शायद स्मृति !
a['
धीरे - धीरे
सब कुछ बिहर जाएगा मेरे भाई
फिर भी बचे रहेंगे देह - गंध, स्वाद और जीवन - संगीत का आखिरी लय
तुम्हारी शेष रहने तक
तुम्हारी ... शेष रहने तक , क्या ?
शायद स्मृति !
ati sundar
शेष - जो दिखाई देता है,पर कुछ भी शेष नहीं होता
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