साभार : गूगल |
घर
से चिट्ठियाँ नहीं आतीं
जब
– तब एस. एम. एस. आते हैं
जो
कंपनी के अनचाहे एस.एम.एसों. में खो जाते हैं
और
कुछ दिनों में गायब हो जाते हैं
नहीं
बचा पाया ज्यादा दिन उन एस. एम. एसों. को भी
जिनमें
पत्नी ने प्यार लिखा था
जिनमें
बच्चों की जिद और बोली के अक्स छुपे थे
इष्ट-मित्रों
के जन्म-दिन बधाई - संदेश भी बिला गए
गाहे-बगाहे
माँ – पिता फोन करते हैं
और
शिकायत की मुद्रा में हाल - समाचार पूछते हैं
उन्हें
दु;ख है कि
अब
कम आता हूँ गाँव
न
कभी चिट्ठी – पत्री लिखता हूँ
मोबाईल
की आवाज़ उन्हें ठीक से सुनाई नहीं देती
और
कान दर्द करने लगते हैं
बड़ी
शिद्दत से महसूस कर रहा हूँ इन दिनों –
बच्चे
फोन पर अपने शिष्टाचार भूलते जा रहे
पत्नी
बिना हाल-समाचार पूछे ही शुरू हो जाती है
फिर
खोलता हूँ घर की चिठ्ठियों के पुलिंदे
बरसों
पहले जिन्हें सम्हाल कर रख दिया था दराज में
उन
पर पड़ी धूल की मोटी परत झाड़ता हूँ
और सोचता हूँ -
और सोचता हूँ -
घर
के प्यार और संस्कार कब तक बचा पाऊँगा भला
दिन
– दिन तार – तार हो रहीं चिट्ठी – पत्री की इन लिखावटों में ?
समझौता तो करना होगा इस नये जमाने की नई परिपाटी से...विचारणीय!!
जवाब देंहटाएंईमेल पर प्राप्त टिप्पणी -
जवाब देंहटाएंमन की गहराइयों में जा कर सुषुप्त भावों को झकझोरने वाली रचना के लिये साधुवाद !!
शकुन्तला बहादुर
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बीते दिनों के संवेदनाएं ... चिट्ठियों का प्यार अब कहां .... कुछ नया ढूंढना होगा ...
जवाब देंहटाएंभाई सुशील जी, आज का कितना बड़ा सच आपने कविता के माध्यम से कह दिया है। वह पोस्टकार्डों, वह अंतर्देशीय पत्रों और लिफ़ाफ़ों की खुशबू और उन्हें सहेज सहेज कर रखने का मोह… अब तो इस नई तकनीक में बिल्कुल बिला गए… एक सुन्दर कविता के लिए बधाई आपको !
जवाब देंहटाएंजीवन की गहराई भागदौड़ में लुप्त हो गई है - जितनी सुविधा,उतना ही अजनबीपन सा
जवाब देंहटाएंचिट्ठी पत्री यादों के भंवर उलझ कर रह गयी हैं ...
जवाब देंहटाएंबीते दिनों की याद दिला दी,…
जवाब देंहटाएंशानदार
well said!!!
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