बुधवार, 30 अप्रैल 2014

दो कविताएँ -

एक (1) -

थोड़ी से नमी 

ओ थोड़ी सी नमी बचाएँ
चाहे जितनी तेज आँच हो हमारे अंदर 
जैसे तपते मरुथल के गर्भ में   
रिसता है कहीं जल 
जैसे सूखे बीज में बची रहती है 
थोड़ी - सी आर्द्रता 
जैसे अकाल में भी बचाए रखती है धरती 
अपने अंतस में गीलापन 

कितनी बेज़ार हो रही तुम्हारी दुनिया 
कि हँसी में छिपी रहती है रूआँसा 
कि बेकली को ओढ़ा दिया जाता है 
सफलता का कफन 

आँखों में जितना काजल तुम्हारे 
उतनी भी शर्म नहीं
आओ थोड़ी ही सही 
आँखों की करुणा और नमी बचाएँ  
अपने बुरे दिनों के लिए  

तुम समझते हो दुनिया तुम्हारे दम पर चलती है ?
पृथ्वी से आकाश तक उधम मचाते हो
दूसरों के आह आँसू पसीना और खून से खेलते हो

जरा कद्र करो इनकी 
वरना तुम्हारी कायनात 
चंद दिनों में ही राख़ हो जाने का अंदेशा है हमें|

दो -(2) 
 उम्मीद की किरण 

एक कमल खिलता है
कोई हाथ जोड़ता है
कहीं लालटेन जलता है
कोई टोपी पहन चिल्लाता है
और न जाने कितने – कितने प्रतीक - चिन्ह हैं
जनता के दु:ख – दर्द निवारण के

जनता सब देखती है
सुनती है
गुनती है

उसके अंदर उम्मीद की 
एक किरण कौंधती है
फिर भक से बुझती है
इतना शोर है सब ओर कि
उसका हाहाकार आकार नहीं ले पाता |
 photo signature_zps7906ce45.png

1 टिप्पणी:

  1. JANVAADEE KAVI SUSHIL KUMAR KEE DONON KAVITAAYEN` THODEE SEE NAME ` AUR UMMEED KEE KIRAN ` APNAA POORAA PRABHAAV MAN PAR CHHODTEE HAIN . DONON KAVITAAYEN EK - DOOSRE KEE POORAK HAIN .

    जवाब देंहटाएं

टिप्पणी-प्रकोष्ठ में आपका स्वागत है! रचनाओं पर आपकी गंभीर और समालोचनात्मक टिप्पणियाँ मुझे बेहतर कार्य करने की प्रेरणा देती हैं। अत: कृप्या बेबाक़ी से अपनी राय रखें...