आदमी कहता -
घर मेरा
घर कहता - कौन मेरा
सब आए सब गए
सजाया मुझे सँवारा मुझे
रंगों से तहज़ीब से नक्काशी से
मैं बिखरा टूटा बहा
फिर जुड़ा कि रहेगा मेरा मालिक हमेशा
इस आस से आँधी से जुझा बतास को सहा
ग्रीष्म की तपन तो कभी घनघोर बारिश को झेला
पर मुसाफिर की तरह आए सब
और सब चले गए |
एक सार्थक सत्य..
जवाब देंहटाएंसच तो है
जवाब देंहटाएंहर कोई जाने के लिए ही आता है यही सत्य है
जवाब देंहटाएं