साभार - गूगल |
कुत्सित तरंगों का
अविवेकपूर्ण कृत्य है आतंकवाद।
नृमर, नृशंस
क्रियाशीलनों के वीर्य से विकसित
असंतोष की अनंत भावनाओं को समेटे
मानवता को दीन-हीन बनाता
विध्वंस का महातांडव रचता
महापातकों का कर्म है आतंकवाद ।
बेवाएँ दु:ख झेलती जहाँ
और मासूम होते अनाथ,
वृद्ध निर्बल निस्सहाय ।
जीवन-चक्रवात के भँवर में
युवक जहाँ पतवार-विहीन नौके में सवार ,
फँसे और घूमते हुये और दिशाविहीन ।
बालू की भीत सी,
टूटते सपनों की ज़मीन पर खड़े
मन के घोड़े पर सवार
दौड़ते आतंकियों के ख़ून-स्याह तेवर
कभी अपनों का रक्त-पिपासु बनता तो
कभी पड़ोसियों के घर जलाता, ऐसे
रुग्ण सभ्यता के सर्जक हैं आतंकी।
हृदय पर दीवारें खड़ी करता
संबंध और ममत्व की नित नींवें हिलाता
आँखों में जुनून
मन में आग लिये
हथियारों से लैस
मासूम चेहरे वाले
उन बेरहम बेमुरव्वत बेरंग
उग्रपंथियों को पता भी है,
कि उनसे कभी बेपनाह मुहब्बत करने वाले
उनके अपने लोग-बाग
उनके किये की पीड़ा
किस कदर झेल रहे हैं कि
उनका घर-बाज़ार भी
आँसूओं से इतना ही तर-बतर
और बरबाद है !
सुशील भाई, यह कविता बन नही पाई है।
ReplyDeleteगुस्सा और चिढ कविता के शिल्प मे जैसे पक कर आना चाहिये आ नही पाया।
देखिये अन्य वादों की तरह आतन्कवाद की कोई सुचिन्तित परिभाषा नही है। हुआ यह है कि जो भी सत्ता के ख़िलाफ़ है उसे आतन्कवादी कहा जाता है।जबकि नक्सलवाद,आज़ादी की लडाइयो और धार्मिक पागलपन मे अन्तर किया जाना ज़रूरी है।