मंगलवार, 23 दिसंबर 2008

नहीं लोकूंगा एक भी शब्द तुम्हारे।

साभार - गूगल 

मैं पापरहित,निष्कलुष,निष्काम

सिर्फ़ कुछ शब्द चुनूंगा

इस दुनिया में

और अपनी कविता में उसे

रख दूंगा।



वह शब्द दराज़ों में सुबकती

मोटी-मोटी किताबों से नहीं लूंगा।


खेतों में स्वेद से लथ-पथ किसानों से

गहरी अंधेरी खदानों में काम कर रहे खनिकों से

भट्ठों पर इँट पाथ रही यौवना-कंठों से

उमस में नंगे पाँव बालू ढोती बालाओं के स्वर से

घर-दफ़्तर-दुकानों पर अपने दिन काटते बाल-मजदूरों से

और जहां-जहां पृथ्वी पर

मेहनतकश लोग श्रम का संगीत रच रहे हैं

उन सबके हृदय से भी


जिंदा कुछ शब्द लूंगा मैं

और कविता में रख दूंगा।


मैं नहीं लोकूंगा एक भी

शब्द तुम्हारे।

तुम्हारे शब्द तो शब्द-तस्करों से

घिरे हुए

घबराये हुए

काँखते हुए

डरे हुए और चुप हैं

जिनके वर्णाक्षरों पर बैठ

कोई तोड़ रहा है रोज़ इसे

और अपने मतलब के व्याकरण में

गढ़ रहा है।
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2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर ब्लॉग बनाया है आपने। कवितायें भी बहुत गंभीर और अच्छी हैं।- अंशु भारती।

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  2. शानदार कविता और खूबसूरत ब्लाग्।
    बधाई

    जवाब देंहटाएं

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