Sunday, May 17, 2009

वैलेनटाइन की रात

साभार : गूगल 
मैं देख रहा था,
धरती की खुली गदगद देह
मथती हुई
धुंध-सी आदमीनुमा
फैलती एक आकृति
तेज कदम से
बढ रही है
मेरे शहर की ओर

उसके पैरों तले
कई शहर
पहले ही पायमाल हो चुकी है
और रात गिर रही है
पोर-पोर सब ओर
उसके काले जादू के सम्मोहन में ।
असंख्य खुले कातर हाथ भी
कठपुतलों से झूल रहे हैं हवा में
और काँप रहा हूँ मैं पत्ते सा

कह नहीं सकता
कौन था वह
मायावी, या कि दुनियावी ?
पर जैसे ही उसने मुझको छूआ,
मेरी साँसें एकदम अटक गयी
और नींद भी मेरी टूट गयी

घबराकर मैंने कमरे के
सब दरवाजे-खिड़कियाँ खोल दिये
सामने देखा--
रात को झुठलाता
'पब' का धूम-धडा़का
'रॉक' धूनों की धमक़
झोलंगे लिबासों में हिप्पी लड़के
तंग स्कर्ट, उटंग टॉप में मनचली लड़कियाँ
अधेड़ मर्दों के सूर्यहीन कंधे
भद्दे,रंगे थुथनों और कटी बांहों की ब्लाउज में
उम्रदराज महिलायें
सब हिलते-डुलते,
एक- दूसरे की बांहों का सहारा ढूंढ़ते।
रात को अपने सीने में
भींच लेने को आतुर

मैं महसूस कर रहा था,
नशेमन फ़ैशनपरस्तों की
वैलेनटाइन की रात मेरे
स्वप्न की रात से
बडी़ और गहरी थी
************

12 comments:

  1. वैलेनटाइन की रात मेरे
    स्वप्न की रात से
    बडी़ और गहरी थी
    सही कहा ।

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  2. Bahut khoob.. dil ko chhu gayi. jabardast rachana.

    "कह नहीं सकता
    कौन था वह
    मायावी, या कि दुनियावी ?
    पर जैसे ही उसने मुझको छूआ,
    मेरी साँसें एकदम अटक गयी
    और नींद भी मेरी टूट गयी"

    aapki rachnayen hamesha hi ek pal ruk kr vicharne ko majboor karti hai.. dhanyavaad.

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  3. सुशील भाई
    शीलपूर्वक
    दिखलाते हैं आईना
    समाज का
    समाज को
    सपने भी
    अपने भी
    सच है सब
    झूठ नहीं
    पर सहें
    अब नहीं।

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  5. PRAKRITI TO AAPKEE KAVITAAON MEIN
    HAI HEE SAMAAJ KA ROOP BHEE HAI JO
    MUN KO APNEE AUR AAKARSHIT KARTAA
    HAI."VALENTINE KEE RAAT " KAVITA
    KEE SHRESHTAA KE LIYE AAPKO BADHAEE

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  6. aaj kal ke velantine day ke sach par steek abhivyakti abhar

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  7. समाज को आईना दिखलाती एक अच्छी रचना .

    बधाई.

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  8. me abhi norway me hoon, par yahaa to pahar khil rahe hen. khush lag rahe hen. shayad unpar adami ne julum nahin kiya he

    behad acchi kavita he, mujhe apani northeast ki yatraa yaa aa gayi

    dhanyvaad acchi kavitao ke liye
    rati saxena

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  9. भद्दे कुरूप सत्य को बड़े प्रभावी ढंग से सुन्दर शब्दों में अभिव्यक्ति दी है आपने...

    एकदम सत्य कहा....

    जिस सुख की अभिलाषा में ये भटकते हैं,क्या इन्हें इस मार्ग पर मिलता है ????

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  10. कविता भाषा के स्तर पर चमत्कृत करती है…परंतु तस्वीर का एक ही रुख देख पाने के कारण एकांगी सी हो गयी है।

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  11. वाह.............समाज को, तथाकथिद ठेकेदारों को सच का दर्पण दिखलाती शशक्त रचना है सुशील जी................शुक्रिया

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  12. susheel ji

    is kavita me to aapne jo samajik aaina batlaaya hai ..wo bahut hi sajeev hai aur hame hamara patan batlaata hai ...

    dhanywad , itni satik rachna ke liye ..

    vijay

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