नित्य बदलती इस दुनिया में जीवन विकास की पटरी पर चाहे
कितना ही तेज क्यों न दौडे़, मनुष्य के अंतरतम में सौंदर्य-बोध और सुख-कामना की जो
चिरकालीन , अदम्य प्यास लगी हुई
है, वह कभी बदलती नहीं, न ही कम होती है । वह
प्यास नैसर्गिक और व्यापक है । यही प्यास उससे बाहरी जगत में, और उसके आभ्यांतर में
भी जो 'सु' है अर्थात सुन्दर है, उसको ढूंढवाती है ।
परंतु इस संसार में जो बाहरी सौंदर्य है,वह मनुष्य की सौंदर्य-कामना को पूर्ण नहीं कर पाता ।
संसार में हर जगह छ्ल-छ्द्म,ढोंग-प्रदर्शन, लूट-खसोट, दंभ-अहंकार और
उत्पीड़न का कारोबार चल रहा है । ऐसे में सौंदर्य का कोई रास्ता नज़र नहीं आता ।
विकल्प बनते हैं भी तो टिक नहीं पाते, तब कविता ही इसका सही विकल्प बनती है क्योंकि इसके
भीतर आत्मिक सौंदर्य का जो संसार रचा-बसा है,वह हमारे तन-मन को सुकुन देता है। वस्तुत: कविता
हमारे भीतर एक ऐसा 'स्पेस' रचती है जहां हम
विश्राम कर सकते हैं और थोडी़ देर ठहरकर सही दिशा में सोच भी सकते हैं । वह मन को
सच्चाई के निकट लाती है , ऐसी सच्चाई जो
व्यक्ति के आस-पास की दुनिया में प्राय: गोचर नहीं होती । वह बाज़ार के बाहर की जगह
है और ध्यान देने की बात यह है कि ऐसी जगह लगातार छोटी होती जा रही है जो बाजार के
बाहर हो और मनुज का निज एकांत हो ।
'रैप और पॉप' की इस चकाचौंध दुनिया में
कविता की अनुगूंजें क्षीण होती जा रही है, पर इस क्षणिक कर्णप्रियता और मादकता के बीच , नहीं भूलना चाहिए कि कविता
हमेशा के लिये है । इसलिये कविता की प्रासंगिकता सदैव बनी रहेगी और अपनी बात खुलकर
कहती रहेगी क्योंकि कविता हर क्षण हमें मनुष्य बने रहने की सीख देती है।
कविता का
स्वरुप ही सत्य की खोज और उसकी प्रतिष्ठा से बनती है । वह मनुष्य के जीवन और
प्रकृति के भावपूर्ण संसार का लेखा-जोखा रखती है । संवेदनाओं के जगत का अगर कहीं
सही हिसाब है तो कविताओं के यहां ! वह लोक-हृदय का सही पता बतलाती है ।
"कविता और साहित्य जिस भूमि पर काम करती
है , वह जीवन के भावनात्मक सत्य के कोमल,कठोर, उर्वर, उदार और व्यापक पहलूओं से बनती है । हमारा यह
संबंध और संघर्षमय संसार मनोंभावों और मनोविकारों की क्रिया-प्रतिक्रियाओं से ही
अपना रुप ग्रहण करता है जिसमें कविता का हस्तक्षेप सत्य के स्तर पर होता है । वह
राजसी और तामसी मनोभावों से टकराती हुई सात्विकता का निर्देश करती है । "
-अगर कविता के विज्ञ समालोचक डा. जीवन सिंह के इस विचार का कोई मंथन करे तो वह
कविताओं के सहज स्वरुप, उसकी प्रकृति और मानव-मन से उसकी
अंतरंगता के कारण को साफ़-साफ़ समझ जायेगा । संभवत: यही वह कारक है जिसके चलते कठिन
से कठिन समय में भी कविता जीवित और जीवंत रहेगी और सतत उत्तर-आधुनिक हो रही
पीढ़ियों की मनुष्यता को सभ्यता की कुरुपता और विरुपण से बचा पायेंगी क्योंकि
पश्चिम से जो विचार और व्यवहार, विकास -
गतिशीलता और उदारीकरण के मुखौटे ओढे़ हमारी संस्कृति की दहलीज लांघकर हममें समा
रहे हैं , उनमें नव-उपनिवेशवाद की 'बू' है जो
हमारी देशज और प्राकृतिक विरासत को नष्ट कर देने पर तुला है ,( इन नष्टप्राय होती चीजों में कविता भी शामिल है )
और एक गुलामी से निकलकर दूसरे गुलामी की ओर हमारे गमन का मार्ग खोल रहा है क्योंकि
वे आदमी के काव्यात्मक तरीके से सोचने की संपूर्ण प्रक्रिया को ही उजाड़ देना चाहते
हैं।
अस्तु,कविता हमेशा इस संवेदनहीनता के विरोध में खडी़ है
। वह इस जीवन के समानांतर एक अलग , विलक्षण
और सुंदर संसार रचती है जिसमें विचारों को बचाने की, जीवन की
अच्छाईयों को अक्षुण्ण रखने की ताक़त है जो उन शब्दों से ग्रहण करती है जो समाज के
श्रमशील -पवित्र श्वांसों से निस्सरित होता है , सक्रिय
होकर सच्चाई को प्रतिष्ठित करता है और मनुष्यता की संस्कृति रचता है। झूठ को जीवन
से विलगाती है एवं अन्याय,शोषण और उत्पीड़न से प्रतिवाद करती है।
इसलिये अत्यंत दुरुह और जटिल होते इस समय में कोई बच सका तो थोडा़-सा वही बच
पायेगा जो उस मन और हृदय के साथ हो जिसमें कविता के लिये भी थोडी़ - सी जगह अशेष
हो ।
कविता में
सबसे बडी़ शक्ति है व्यंजना की, उन
ध्वनियों की जो कविता में प्रयुक्त शब्दों में अंतर्निहित होती है । यह ताक़त तो
साहित्य की अन्य विधाओं के पास भी नहीं है । वैसे विधाओं में आपसी मतभेद नहीं होता
। फ़िर भी मानव जीवन में कविता के शब्दकर्म की उपादेयता स्वयंसिद्ध है ।
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vaah...bahut sundar prastuti hai
जवाब देंहटाएंकविता, कहानी,संस्मरण की सार्थकता कहाँ होगी अब, फर्राटे से अंग्रेज होते लोग हिंदी की अहमियत भूल गए है
जवाब देंहटाएंभाषा का ज्ञान अति आवश्यक है
पर यहाँ तो अंग्रेजी बोलने में शान
चलने में शान
दिखने में शान !
हिंदी गलत बोल लो तो कोई बात नहीं
पर अंग्रेजी - भारत को अंग्रेजों ने गिरफ्त में ले लिया
कविता की सार्थकता मिटी नहीं है,पर हिंदी आती हो तब न
जीवन वहीँ शेष रहा जहाँ कविता बची थी !
जवाब देंहटाएंसार्थक आलेख !
जीवन भी एक कविता ही है और यदि जीवन है तो कविता है और रहेगी हमेशा
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया लेख ... कविता की प्रासंगिकता को कभी भी नकारा नहीं जा सकता
जवाब देंहटाएंकविता हर क्षण हमें मनुष्य बने रहने की सीख देती है।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और सार्थक आलेख.....
अनु