पचास की वय पार कर
मैं समझ पाया कि
वक्त की राख़ मेरे चेहरे पर गिरते हुए
कब मेरी आत्मा को छु गई, अहसास नहीं हुआ
उस राख़ को समेट रहा हूँ अब दोनों हाथों से
2.
दो वाक्य के बीच जो विराम-चिन्ह है
उसमें उसका अर्थ खोजने का यत्न कर रहा हूँ
3.
मेरे पास खोने को कुछ नहीं बचा
समय उस पर भारी होगा
जो समय का सिक्का चलाना चाहते हैं
आने दो उस अनागत अ-तिथि को
उसके चेहरे पर वह राख़ मलूँगा
जिसे मैंने अपने दोनों हाथों से बटोरी है
4.
जितने दृश्य दर्पण ने रचे थे
वह सब उसके टूटने से बिखर गए
रेत पर लिखी कविताएँ
लहरें अपने साथ बीच नदी में ले गई
अब जो रचूँगा, सहेजकर रखूँगा
हृदय के कागज पर अकथ लिखूंगा
5.
यह कालक्रम नहीं
समय के दो टूकड़ों के बीच की रिक्ति है
अथवा कहो- क्रम-भंग है,
एक विभाजन-रेखा है
इसमें अनहद है अनाहत स्वर है
नि: शब्द संकेत-लिपि है
कविता का बीज गुप्त है इसमें !
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